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२७१. पत्र: मगनलाल गांधीको

मुजफ्फरपुर
रविवार, अप्रैल १५, १९१७

चि० मगनलाल,

यहाँका मामला जितना मैंने समझा था, उससे अधिक गम्भीर है। यह फीजी और नेटालकी स्थितिसे भी बुरा जान पड़ता है। फिर भी ज्यादा तो जाँच करनेपर ही मालूम हो सकेगा।

अधिकारियोंसे मिला हूँ। सम्भव है, उनका विचार मेरे ऊपर हाथ डालनेका हो। मुझे यहाँ एक घड़ीकी भी फुरसत नहीं मिली है। अभी चम्पारन जा रहा हूँ। जाते-जाते यह पत्र लिख रहा हूँ, मुक्त रहा तब भी कब आ सकूँगा, कह नहीं सकता। जेल गया तो अभी कुछ समयके लिए यह पत्र अन्तिम ही होगा। जो भी होगा, उसकी सूचना तुम्हें तारसे मिल जायेगी। इस समय किसीको भी यहाँ आकर जेल जानेका विचार करनेकी आवश्यकता नहीं है। प्रो० शाहसे कहना कि हमने राष्ट्रीय शालाके जिस प्रयोगका विचार किया है; उसे तो शुरू कर ही देना चाहिए। वे उसे काका, फूलचन्द और छगनलालके साथ मिलकर आरम्भ कर दें। बुनाईका काम सीखनेमें कोई आश्रमवासी सहायता करे।

श्री पेटिटके पाससे १,५०० रुपयेकी दूसरी किस्त एक-दो मासमें आ जानी चाहिए। तुम हर साल ३,००० रुपये निकाल सकते हो। उनसे १५,००० रुपये तक लेना तय हुआ है। उससे सत्याग्रहियों और उनके परिवारोंका खर्च चलाना है। इससे अधिककी आवश्यकता होगी तो वह भी मिल सकता है।

देवदासका पढ़नेका शौक पूरा करना। मेरे दिये गये पतेपर पत्र लिखते रहना। मेरे सम्बन्धमें कोई निश्चित समाचार मिलनेपर बन्द कर देना।

बापूके आशीर्वाद

अच्छा हुआ, प्रभुदासको नहीं लाया। वह कलकत्तेमें आनन्द कर रहा होगा डॉक्टरको पत्र लिखना।

मूल गुजराती पत्रकी हस्तलिखित प्रति (एस० एन० ९८१५) की फोटो-नकलसे।