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पत्र: एस्थर फोरगको

 

अंग्रेजीका ज्ञान केवल थोड़से लड़कोंको विदेशी भाषाके तौरसे दिया जाये। मुझे विश्वास है कि जबतक हमारे मनसे अंग्रेजी पढ़नेका मोह दूर नहीं होगा तबतक हम लोगोंमें सच्चे स्वराज्यकी भावना नहीं आ सकती। कुछ मित्र मुझे कहते हैं कि साधारण कामोंमें जैसे कि रेलगाड़ीकी मुसाफिरीमें अथवा तार पढ़नेका अवसर आ जानेपर अंग्रेजी जाने बिना हमें बड़ी परेशानी उठानी पड़ती है। पर ऐसी स्थितिके उत्तरदाता हम स्वयं हैं। यदि हमारी मन्दताके प्रभावमें हम अपना धर्म भूल जायेंगे तो यह पराधीन दशा और भी निकृष्ट हो जायेगी।

परिणाम यह होगा कि हमारे करोड़ों भाई जो कदापि अंग्रेजी नहीं सीख सकते गुलाम बने रह जायेंगे। अंग्रेजी पढ़े हुए और उनके बीचमें एक खाई उपस्थित हो जायेगी।

प्रचलित शिक्षणका हमारे घरोंपर कुछ असर नहीं होता――गोकि नियम यह है कि विद्यार्थी-जीवनका प्रभाव सारे देशपर पड़ना चाहिए। थोड़े-से इत्रकी सुगन्धि जैसे सब जगह फैल जाती है, वैसे विद्यार्थी जीवन होना चाहिए। मेरे खयालसे स्वराज्यकी कुंजी सरकारके हाथमें उतनी नहीं है जितनी कि हमारी शिक्षा-प्रणालीपर है।

सत्वर्म प्रचारक, गुरुकुल अंक, २४-३-१९१७

२६६. पत्र: एस्थर फैरिंगको

अहमदाबाद
मार्च ३१, १९१७

प्रिय एस्थर,

मैं श्रीमती पोलककी बहनकी ओरसे तुम्हें बहुत कष्ट दे रहा हूँ। किन्तु तुमने तो स्वयं ही मुझे अपना भाई बनाया है। और मेरी यह ख्याति है कि अपने बहुत ही प्रिय और आत्मीय जनोंको मैं सबसे ज्यादा कष्ट देता हूँ। चूँकि तुमने अपना आत्मीय मान लिया है, तुम्हें सन्तोषपूर्वक यह सब सहना चाहिए।

कुमारी ग्रहम, उन बहिनका नाम यही है, शायद तुरन्त ही ऊटी जा सकती हैं उनके लिए और पोलकके बच्चेके लिए अविलम्ब पहाड़पर चले जाना आवश्यक है। मुझे लगता है, मैं अप्रैलमें मद्रास नहीं जा सकूँगा।यदि इस वर्ष जा भी सका तो तुम जब पहाड़से लौट आओगी उसके बाद ही जाऊँगा।

तुम्हें और कुमारी पीटर्सनको हम सबका प्यार।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड,