पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/३९४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२६५. शिक्षण पद्धति

मार्च २४, १९१७

हम लोगोंमें अपनी हर चीजका मुकाबला पश्चिमी सभ्यताके साथ करनेका रिवाज हो गया है। हम कहते हैं कि हमारी पूर्वी सभ्यता पश्चिमी सभ्यतासे काफी अच्छी है। परन्तु हमारा आचरण इससे उलटा है। इसलिए भारतीय विद्यार्थियोंकी शिक्षण-पद्धति शुद्ध नहीं रही; संकर हो गई है। हमारे विद्यालयों में से हम अपने प्राचीन ऋषि-मुनियोंके वारिस उत्पन्न नहीं कर पाते। यह बड़े दुःखकी बात है। इस बातपर मैं बहुत समयसे मनन करता आ रहा हूँ। परिणामस्वरूप जो विचार मुझे सूझे हैं उनको मैं वाचक-वृन्दके सम्मुख रखता हूँ।

देशका आधार जिस धन्धेपर हो उस धन्धेका सामान्य ज्ञान सब विद्यार्थियोंको देना चाहिए। इस सिद्धान्तको कोई अस्वीकार नहीं करेगा। इस सिद्धान्तके अनुसार हमारे सब विद्यार्थियोंको खेतीका और बुननेका काम सिखाना चाहिए। क्योंकि भारतवर्षके प्रायः ९५ सैकड़ा मनुष्य खेतीके काममें रुके हुए हैं। पहले इनमें से ९० फी सदी बुननेका काम भी करते थे।

जबतक शिक्षित वर्ग इन दो बातोंपर ध्यान नहीं देगा तबतक हम अपने करोड़ों किसानों और लाखों जुलाहोंके दुःखको बिलकुल नहीं समझ सकते। और न इन दोनोंके धन्धोंमें ही कुछ सुधार हो सकता है।

यदि हमारा शरीर तन्दुरुस्त न होगा तो हम कुछ काम नहीं कर सकते। इसलिए लड़कोंको बचपनसे आरोग्य-शास्त्रकी शिक्षा देना आवश्यक है।

धर्मके ऊपर सब कुछ निर्भर है। और संस्कृत जाने बिना धर्म-शास्त्रोंका ठीक न मिलना अशक्य है, इसलिए संस्कृतका जानना भी प्रत्येक हिन्दू लड़केका कर्तव्य है। किन्तु हर कहीं गुरुकुलका प्रबन्ध, मेरे विचारसे, बड़ा कठिन है। इसलिए सामान्य शिक्षणको सामान्य ज्ञान देकर समाप्त करना चाहिए। जिस विद्यार्थीमें असाधारण शक्ति हो उसके लिए चाहे विशेष प्रबन्ध भले किया जाये।

इतिहास व भूगोल पढ़ानेकी सरकारी पद्धति बदली जानी चाहिए। इतिहास और भूगोलमें प्रायः देशके बारेमें ही ज्ञान दिया जाना चाहिए। मेरा अनुभव ऐसा है कि बहुत लड़कोंको मिडिलसैक्स तो मालूम रहता है; लेकिन वे काठियावाड़ या सोरठ प्रान्तके बारेमें कुछ नहीं जानते। इतिहासमें विद्यार्थियोंको संयुक्त राज्यका ज्ञान पर्याप्त रहता है और हमारे अपने शिवाजीको वे एक लुटेरा समझते हैं।

गणित-शास्त्रमें भी यही हाल है; लड़कोंको बड़े-बड़े हिसाब मालूम रहते है, पर वे सामान्य व्यवहार-गणित नहीं जानते। देशी तालिकाकी जानकारी भी उन्हें पूरी-पूरी नहीं होती।

शिक्षण अलग-अलग प्रान्तोंमें वहींकी अपनी भाषामें होना चाहिए। और तदुपरांत भारतवर्षकी दो-तीन और भाषाओंका ज्ञान होना चाहिए।