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२६१. पत्र: मणिलाल गांधीको

अहमदाबाद
बुधवार [मार्च ७, १९१७ से पूर्व][१]

चि० मणिलाल,

जितना दुःख तुम्हें जानेमें हुआ होगा, तुम्हें जाने देनेमें उससे अधिक दुःख मुझे हुआ है। किन्तु, अनेक बार मुझे अपना हृदय वज्रसे भी कठोर कर लेना पड़ता है, क्योंकि मैं तुम्हारा हित इसीमें समझता हूँ। यदि तुम वहाँ अपना निर्माण कर सकोगे तो सब अच्छा ही होगा। मैं चाहता हूँ कि तुम स्वतन्त्र विचार करना सीखो और जब मेरा विरोध करना उचित जान पड़े तब साहसपूर्वक मेरा विरोध भी करो। तुम पूरे मजदूर बनो। मैं इसीमें श्रेय मानता हूँ।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० १११) से।

सौजन्य: सुशीलाबेन गांधी

 

२६२. पत्र: मणिलाल गांधीको

फाल्गुन सुदी १४ [मार्च ७, १९१७][२]

चि० मणिलाल,

तुम तो वहाँ अबतक पुराने भी हो गये होगे। भाई मेढ़[३] और प्रागजी कुछ ही दिनोंमें वहाँ पहुँच जायेंगे। इसलिए अभी कुछ दिन तुम्हें वहाँका वातावरण भी यहाँके जैसा ही लगेगा।

तुम अपनी खाँसीका ठीक इलाज करके निश्चिन्ततापूर्वक कार्य करना। इलाजकी दृष्टिसे श्वासोच्छवासकी क्रिया और छोटे चम्मचसे एक चम्मच जैतूनके तेलका सेवन पर्याप्त होगा। बादमें उसकी मात्रा बढ़ाई भी जा सकती है। टमाटरके साथ मिलाकर उसे कच्चा खाया जा सकता है। चाय, कॉफी और कोको छोड़ दोगे तो उस हदतक खाँसीको जड़-मूलसे नष्ट करनेमें मदद मिलेगी। इस सबपर ठीकसे सोच-समझकर अमल करना। श्वासोच्छवासकी क्रिया करनेमें किसी भी कारणसे आलस्य न करना। इसका

 
  1. १. यह पत्र ७ मार्च १९१७ को लिखे गये अगले शीर्षक “पत्र: मणिलाल गांधीको”, से पूर्व लिखा गया जान पड़ता है।
  2. २. मणिलाल १९१७ के आरम्भमें दक्षिण आफ्रिका चले गये थे।
  3. ३. सुरेन्द्रराय मेद, दक्षिण आफ्रिकी सत्याग्रहके एक प्रमुख कार्यकर्ता।