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२६०. भाषण: कलकत्ताकी गिरमिट-विरोधी सभामें

मार्च ६, १९१७

६ मार्च, १९१७ को कलकत्तेके टाउन हॉलमें महाराजा मणीन्द्रचन्द्र नन्दीको अध्यक्षता में एक सार्वजनिक सभा हुई, जिसमें गांधीजीने गिरमिटिया मजदूरोंके दक्षिण आफ्रिका-प्रवासके बारेमें एक वक्तव्य दिया।

श्री मो० क० गांधीने अध्यक्ष द्वारा प्रस्तुत किये गये प्रस्तावका अनुमोदन करते हुए कहा: अहमद मुहम्मद काछलियाके पुत्रका अभी हाल ही देहान्त हो गया है; हम सब उनके प्रति संवेदना प्रगट करते हैं। श्री काछलिया ट्रान्सवाल ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष थे। वे सत्याग्रही हैं और कई बार जेल जा चुके हैं। श्री गांधीने कहा कि सरकारने श्री मालवीयको अपना विधेयक प्रस्तुत नहीं करने दिया, क्योंकि वह स्वयं एक ऐसा विधेयक प्रस्तुत करना चाहती है जिससे लोग सन्तुष्ट हो जायेंगे। हम सभी जानते हैं कि वाइसरॉयकी सहानुभूति हमारे साथ है; किन्तु भारत-मन्त्री हमारे विरुद्ध हैं। वे भारतीयोंको हानि पहुँचाकर उपनिवेशीय खेत-मालिकोंके हितोंको सोनेसे तोलना चाहते हैं। भारत-मन्त्री यहाँसे बहुत दूर बैठे हैं और इतनी दूरसे वे भारतीयोंकी भावनाओंको नहीं समझ सकते। भारतका विश्वास है कि श्री एन्ड्रयूजकी रिपोर्ट[१] सच्ची है। खेत-मालिकोंने इंग्लैंड भेजे जानेके लिए अपने सर्वोत्तम लोग नियुक्त कर दिये हैं। और वे समय देने के लिए आग्रह कर रहे हैं। यदि भारत अपने-आपको अवसरके योग्य सिद्ध नहीं करेगा तो खेत-मालिक बाजी मार ले जायेंगे। इस प्रथाको अब बन्द करना चाहिए――यह बात भारत-मन्त्री नहीं, भारतके लोग ही कह सकते हैं और उन्होंने उसके लिए ३१ मईकी तिथि निश्चित की है। इसकी तिथि साल-दर-साल टलती जाये और हम इसे चुपचाप बैठे देखते रहें, यह नहीं हो सकता। यह कह देना हमाराकर्तव्य है कि भारत इस अन्यायको ३१ मईके बाद एक क्षण भी सहन नहीं कर सकता। लन्दन सम्मेलनमें इसके सिवाय कोई भी व्यवस्था क्यों न की जाये, वह भारतको कदापि स्वीकार्य न होगी ।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, ७-३-१९१७
 
  1. १. फीजीके गिरमिटियोंके बारेमें रिपोर्ट; देखिए “भाषण: भारतीय गिरमिटिया मजदूरोंके सम्बन्ध में”, २८-१०-१९१५।