हमें फौजमें ऊँचे अफसरकी जगह दी जायेगी या नहीं तो मैं कहूँगा कि यह रोना बादमें रोयें क्योंकि ऐसा न हो कि हाथ आया हुआ अवसर निकल जाये। सरकारके पास जाकर हमें कहना चाहिए कि हम तैयार हैं। (तालियाँ)। इसीमें हमारी शोभा है। अब में वकील श्री बेजनजीसे प्रार्थना करूँगा कि पहला प्रस्ताव पेश करें।
सभा विसर्जित करनेके पूर्व गांधीजींने कहा:
सभा समाप्त करनेसे पहले मैं आप लोगोंको तथा आयोजकोंको धन्यवाद देता हूँ। एक बात और है――मैं गोखले कोष जमा करनेके सम्बन्ध में कुछ कहना चाहता था और जहाँ-कहीं मैं गया हूँ यह बात मैंने कही भी है। जो लोग इस कामके लिए स्वयंसेवकों की तरह कार्य करना चाहते हों वे फाटकपर खड़े हो जायें और देनेवाले सज्जन जो कुछ भी देना चाहें उन्हें देते जायें। इसका श्रेय सूरतको मिलेगा। जिस प्रस्तावका[१] अनुवाद श्री ठाकुरराम चाहते हैं वह मेरे पास मौजूद है; मैं उसका अनुवाद उनके पास भेज दूँगा [और] वे उसमें आवश्यक फेरफार करके प्रकाशित करवा सकते हैं।
गुजरात मित्र अने गुजरात दर्पण, ४-३-१९१७।
२५५. तार: महाराजा कासिम बाजारको
[अहमदाबाद
फरवरी २६, १९१७ या उसके बाद][२]
कलकत्ता
गांधी
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ६३४७) की फोटो-नकलसे।
- ↑ १. शायद तात्पर्य उस प्रस्तावसे है जो शाही विधान परिषद्में गिरमिट-प्रथाके बारेमें पेश किया गया था।
- ↑ २. यह महाराज के २६ फरवरीके तारके उत्तरमें भेजा गया था। तार इस प्रकार था: “६ मार्चकोसार्वजनिक सभा। कृपया कलकत्ते मेर। आतिथ्य स्वीकार करें ।”
- ↑ ३. गांधीजी ६ मार्चको कलकत्ता पहुँच सके थे। देखिए “भाषण: कलकत्ताकी गिरमिट-विरोधी सभा ", ६-३-१९१७।
- ↑ ४. एक सिन्धी नेता जिन्होंने राष्ट्रकी खातिर जेल भोगी।