पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/३८४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रथा अनीतिपूर्ण है और उससे अन्य कोई लाभ भी नहीं हो रहा है। थोड़ा बहुत आर्थिक लाभ होना सम्भव है परन्तु यह देखते हुए कि इससे नैतिक पतन हुआ है, इस प्रथाका अन्त होना चाहिए। इस प्रश्नपर मतभेदकी गुंजाइश है ही नहीं। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ का सम्पादक पूछता है कि इस सवालको कौन हल करे और कब; जवाब फौरन ही मिलेगा कि यह अधिकार तो भारतका ही है; किन्तु इस सम्बन्ध में वाइसरॉयकी अपेक्षा हमारी भावना अधिक उपयोगी कार्य कर सकती है। मैं इसका केवल एक ही उदाहरण प्रस्तुत करूँगा――हमारी पूजनीय बहन बाजी गौरी अस्वस्थ और उनकी छोटी बहन उनकी सेवा-शुश्रूषामें लगी हुई हैं। परिणामस्वरूप वे स्वयं अस्वस्थ हो गई हैं। उनके प्रति जितनी सहानुभूति यहाँके लोगोंकी होगी उतनी मुझ अहमदाबाद-निवासीकी नहीं हो सकती। और उनकी छोटी बहनकी जैसी सहानुभूति तो किसीको भी नहीं हो सकती। यदि मुझे उन-जैसी सहानुभूति होती तो मैं उनकी रोग-शय्याके पाससे न हिलता। ठीक उसी प्रकार अपने भाई-बहनोंकी दशाका खयाल जितना हम लोगोंको होगा उतना वाइसरॉयको नहीं हो सकता। हमें इस प्रथाको बन्द करनेकी अन्तिम तिथि निश्चित करा लेनी चाहिए; हमें कह देना चाहिए कि ३१ मई तक इस प्रथाको हम सहन कर सकते हैं। यदि यह प्रथा निश्चित तिथिसे एक दिन भी आगे चालू रही तो हजारों व्यक्ति अपनी जानकी बाजी लगा देंगे। यह प्रथा आज कोई पचास वर्षोंसे जारी है। इसके सम्बन्धमें अब-कहीं हमने प्रस्ताव रखा है और उसपर चर्चा शुरू की है, यह शर्मकी बात है। परन्तु में इसके विषयमें कुछ नहीं कहूँगा। इस प्रथाका [कटु] अनुभव मुझे गत बीस वर्षोंसे हो रहा है। इसलिए यदि आज मेरा हृदय रुदन करने लगे, मेरा मन भावाविष्ट हो जाये और यदि मैं अपने विचार विस्तारसे आपके समक्ष रखूँ तो आप मुझे क्षमा करेंगे। यह प्रथा गुलामीका ही एक रूप है। ब्रिटिश साम्राज्यकी छत्रछायामें फलने-फूलनेवाली इस प्रथामें गुलामीकी उसी प्रणालीके तत्त्व दीख पड़ रहे हैं जिन्हें इंग्लैंड बड़े गर्वके साथ जड़से उखाड़ फेंकनेका दावा कर रहा है। गिरमिट-प्रथाके विषयमें कहा जा सकता है कि वह सीमित अवधि तक की गुलामी है। गुलामीके सभी लक्षण तो इस प्रथामें मौजूद ही हैं; एक और भी बात इसमें है। इसे पूरी तरह जाननेके बाद व्यक्ति काँप उठता है। इस प्रथाके परिणामस्वरूप भारतकी नारीका गौरव बिलकुल नष्ट हो जाता है; उसकी मर्यादाका लोप हो जाता है। इस देशमें जिस सिद्धान्तके पीछे लाखों मनुष्य जानपर खेल गये, उसी सिद्धान्तका इस पद्धतिके कारण गला घुट रहा है। इसी बातको लेकर हम लोग यहाँ एकत्रित हुए हैं।

मैं यहाँ आपकी भावनाओंको उत्तेजित करने नहीं आया हूँ। जोश उभारनेके मामलेमें श्री ऐन्ड्रयूज मेरी अपेक्षा कहीं अधिक कुशल हैं। उन्होंने हालातका हूबहू चित्र खींच कर रख दिया है। मेरी कामना है कि इस प्रथासे सम्बन्धित जो साहित्य हमारे पास है, उसे पढ़कर आप लोगोंका भी खून उसी प्रकार खौल उठे, जैसे मेरा खौल रहा है। उसके अनन्तर मेरी प्रभुसे यह भी विनय है कि बाजी गौरी बहन शीघ्र स्वस्थ हो जायें। परन्तु जो कष्ट समुद्रके पार हमारी हजारों बहनें भोग रही हैं उस कष्टके सामने बाजी गौरी बहनका कष्ट नगण्य है। बदकिस्मतीसे यदि उनकी आत्मा इस नश्वर