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भाषण: सूरतमें गिरमिट-प्रथापर

लिया है; पहले आप उसे पूरा करें अन्यथा कोई दूसरा कार्य स्वीकार करनेका आपको अधिकार नहीं रहता। मैं आपको उस कर्त्तव्यकी याद दिलाता हूँ। पिछले साल में सूरत आया था और आपसे मिला था; आपने उस समय महात्मा गोखलेके लिए एक कोष इकट्ठा करनेका निश्चय किया था। फिर आजतक उसकी कोई खबर नहीं ली गई। श्री अडवानीने उसमें ५०) दिये थे। केवल वे ही रुपये इस कोषमें अबतक पड़े हुए हैं। गोधरामें मेरी उनसे भेंट हुई थी, किन्तु इस बातकी चर्चा करनेका साहस मुझमें नहीं हुआ। अभी कोई बहुत देर नहीं हुई है; इस कोषके लिए आज भी आप पैसा इकट्ठा कर सकते हैं। यद्यपि श्री जहाँगीर पेटिटवाला कोष अब बन्द हो गया है और उसका न्यासपत्र भी तैयार हो चुका होगा। किन्तु भारत सेवक समाजमें अभी भी आप पैसा भेज सकते हैं। हरएक व्यक्तिको अपनी शक्तिके अनुसार कुछ देना ही चाहिए। शायद सूरतने, जिसका गुणगान नर्मदाशंकरने[१]किया है, यह सोचा हो कि वह देगा तो हजारों रुपये देगा या देगा ही नहीं। परन्तु मेरी सलाह यह है कि इस अवसरपर यदि आप सौ रुपये भेजते हैं तो दूसरे मौकेपर एक हजार रुपये भेज सकेंगे। यह विषय महत्त्वपूर्ण इसलिए है कि गिरमिट-प्रथाको हटानेके इस उद्देश्यके निमित्त नायडू बहन त्याग कर रही हैं और १८९६ में महात्मा गोखलेने उसमें अपना सहयोग दिया और १९१२ में तो उन्होंने इसे अपना ही प्रश्न बना लिया था। मुझे मालूम है कि उन दिनों उन्होंने जो व्याख्यान दिये उनमें उन्हें बड़ा श्रम हुआ और उससे उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ा। इसलिए जिस महान नेताने इस प्रश्नकी खातिर अपने शरीर तक का बलिदान कर दिया उसकी स्मृतिमें कोष एकत्रित करनेके अपने पुराने वचनको याद करते हुए, आपको यथा-शक्ति चन्दा देना चाहिए। जिन सज्जनने मुझसे इस सभाकी अध्यक्षता करनेका प्रस्ताव किया था उन्होंने कहा है कि जो दो प्रश्न हमारे सामने हैं उनमें अधिक महत्त्वपूर्ण सेनाके लिए स्वयंसेवकोंके रूपमें सैनिकोंकी भर्तीका है। परन्तु मैं तव यह कहूँगा कि इन दोनों प्रश्नोंमें गिरमिटका प्रश्न अधिक महत्वका है। सेनामें भर्ती होनेके अधिकारके बारेमें आप जिस सन्तोषका अनुभव कर रहे हैं उसे प्रकट करना तो ठीक ही है; परन्तु उसके बाद जो करना उचित है सो भी तो करना होगा; नहीं तो कोरा सन्तोष किस कामका? गिरमिट-प्रथाके बारेमें तो हमारा यह सतत प्रयत्न होना चाहिए कि भारतका कोई भी छोटा या बड़ा, प्रसिद्ध या अप्रसिद्ध नगर या गाँव ऐसा न रहे जिसमें इस प्रथाके विरोधमें आवाज न उठाई जाये। आपको मालूम है कि मैं दिल्लीसे आ रहा हूँ; वहाँ में महामहिम वाइसराय महोदय तथा राष्ट्रीय नेताओंसे मिल चुका हूँ।नायडू बहन तथा स्वर्गीय गोखलेकी भाँति भाई श्री ऐन्ड्रयूजने भी त्याग किया है। इस प्रश्नके सम्बन्धमें लगातार विचार करते रहनेके कारण उनके मनपर इतना गहरा असर पड़ा कि वे अस्वस्थ हो गये। यहाँतक कि उनका भाषण, जिसका अनुवाद हरएक भाषामें हुआ है, श्री पोलकको पढ़कर सुनाना पड़ा था। अब हमें इस सम्बन्धमें सार्वजनिक सभाएँ करनी चाहिए। ऐसा करनेमें हम सरकारको परेशानीमें नहीं डाल रहे हैं, प्रत्युत उसके हाथ मजबूत कर रहे हैं। खुद सरकारने ही स्वीकार किया है कि गिरमिट

  1. १. गुजराती कवि नर्मंद।