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२५३. भाषण: सरोजिनी नायडूके बारेमें[१]

फरवरी २३, १९१७

आज बहन सरोजिनीको[२] देखकर मुझे लॉर्ड कॉलिन कैम्बेलकी याद आई। लॉर्ड कॉनिल कैम्बेल १८५७ के विद्रोहके समय भारतमें मुख्य सेनाधिकारीकी हैसियतसे आये थे। उस समय सैनिक अधिकारी अपने ऐश-आरामकी साधन-सामग्री लाने-ले जानेके लिए ऊँटोंका मनचाहा उपयोग करते थे और खाद्यसामग्री जैसी महत्त्वकी सामग्री ले जानेके लिए ऊँट पर्याप्त संख्यामें नहीं मिलते थे। इसलिए लॉर्ड कैम्बेलने अपने उपयोगके लिए केवल एक ही ऊँट रखकर बिना कुछ कहे-सुने दूसरे अधिकारियोंको उनके कर्त्तव्यका भान कराया जिससे सिपाहियोंका कुछ असन्तोष दूर हुआ। बहन सरोजिनी पहली श्रेणीमें यात्रा करती हैं किन्तु उनका सामान महज दो छोटी-सी पेटियोंमें आ जाता है। मैंने उनका गृह-जीवन देखा है और उसे देखकर मैं उनके प्रति सम्मानकी भावना रखने लगा हूँ। उनके चार बच्चे हैं जिनमें से सबसे छोटा तेरह वर्षका है। इस समय वे लगभग वानप्रस्थावस्थाका जीवन बिता रही हैं। वे लक्षाधिपतिकी पुत्री हैं और एक लक्षाधिपतिकी पत्नी हैं। फिर भी अपने घरका कामकाज अत्यन्त दक्षतापूर्वक चलाती हैं। उनके मनमें सिर्फ यही एक बात गूंजती रहती है कि भारतकी उन्नति कैसे हो। उन्होंने अपने भाषण में हमारी जो भर्त्सना की है उसमें उनका उद्देश्य हमें सम्पूर्णताकी प्राप्ति के लिए प्रेरित करनेका है। हिन्दू और मुसलमान उनके लिए समान हैं। अंग्रेजी भाषा उनके लिए मातृभाषा जैसी हो गयी है किन्तु वे यह मानती हैं कि देशी भाषाओंके उद्धारके बिना हमारा काम नहीं चलेगा। हमें अपने अवगुणोंको जीतकर उनके-जैसे उच्च आदर्शोंको ग्रहण करना चाहिए ।

[गुजरातीसे]
प्रजाबन्धु, २५-२-१९१६
 
  1. १. यह भाषण अहमदाबादमें सरोजिनी नायडूके सम्मानमें आयोजित एक सभामें दिया गया था स्थानीय विद्यार्थियोंने इसमें उन्हें मानपत्र अर्पित किया था।
  2. २. सरोजिनी नायडू (१८७९-१९४९); प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और कवियत्री; १९२५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके कानपुर अधिवेशनकी अध्यक्ष; स्वतंत्रता प्राप्तिके बाद उत्तर प्रदेशकी गवर्नर।