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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पाँच वर्षतक और रहने दिया जाये तथा उस अवधिके अन्तमें बन्द कर दिया जाये। भारत-मन्त्री इस बातके लिए व्यग्र हैं कि जहाँतक सम्भव हो यह प्रथा इस तरह बदली जाये जिससेउ पनिवेशोंके आर्थिक हितोंको कमसे-कम आघात पहुँचे। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जबतक कोई उचित संरक्षणयुक्त तरीका नहीं निकल आता तबतक वर्तमान प्रथा निश्चित रूपसे कायम रखी जायेगी।

अवधिमें पाँच वर्षकी अभिवृद्धिका उल्लेख करनेके कारण श्री एन्ड्रयूजकी भर्त्सना की गई है। उनके आलोचकोंसे बने तो, श्री बोनार लॉके फीजीके पत्रोंमें प्रकाशित इस जोर दार वक्तव्यका वे निराकरण करें। यदि हम सजग न रहे तो कुछ सरकारी वक्तव्य के कारण तथा कुछ बागान-मालिकोंके आर्थिक हितोंके सम्बन्धमें भारत-मन्त्रीकी चिन्ताके कारण, हमारा प्रयोजन आसानीसे विफल हो सकता है।

वाइसरायके भाषण तथा श्री बोनार लॉके खरीतेको ध्यान में रखते हुए हमारा कर्त्तव्य स्पष्ट हो जाता है। जहाँ आवश्यक हो, हमें सरकारके हाथ मजबूत करने चाहिए और उसे गतिशील भी बनाना चाहिए ताकि यह अन्तविभागीय समिति हमारी आशाओंपर तुषारपात न कर सके। यह एक ऐसी समिति है जिसमें साम्राज्यीय उपनिवेशोंका तथा उपनिवेश कार्यालयका प्रभाव बहुत अधिक रहेगा। यह एक ऐसी समिति है जिसे ऐसा प्रत्युपाय ढूँढ़ निकालना है जो हमें स्वीकार्य हो। मेरा विचार तो यह है कि यदि इसको मुख्यतः मजदूरोंके कल्याणपर ही विचार करना है तो यह व्यर्थका प्रयत्न होगा। किन्तु यदि बागान-मालिकोंकी चल सकी तो हम जानते हैं कि वे ऐसे प्रत्युपायपर जोर देंगे जो असम्भव होगा। और जब हम उसे अस्वीकृत कर देंगे तब वे श्री बोनार लॉके खरीतेके अनुसार गिरमिटके अन्तर्गत भर्ती जारी रखनेकी माँग करेंगे इसलिए यह स्पष्ट रूपसे समझ लेना चाहिए कि स्वीकार्य प्रत्युपाय ढूँढ़ निकालनेका दायित्व उनपर है, न कि हमपर। वे एक वर्षसे अधिक समय ले चुके हैं। लॉर्ड हार्डिज़ने जिस खरीतेमें गिरमिटके पूर्ण उन्मूलनपर जोर दिया था वह १५ अक्तूबर, १९१५ को भेजा गया था। समितिकी बैठक आगामी मईमें होगी। सम्यक् दृष्टिसे विचारें तो प्रत्युपाय ढूंढ़ निकालनेके लिए यह समय बहुत अधिक है। श्री ऐन्ड्रयूजने फीजीमें जीवनकी स्थितियोंका जो मर्मभेदी चित्र खींचा है वह या तो सत्य है या असत्य। हमारा विश्वास है कि वह सत्य है और उसका कभी गम्भीरतापूर्वक खण्डन नहीं किया गया। एक वर्षसे अधिक प्रतीक्षा करनेका अर्थ हमारी सहनशक्तिकी हद-सी ही समझिए। इसका प्रत्युपाय मिले या न मिले, अपनी प्रतिष्ठा और कीत्तिकी खातिर और वास्तवमें साम्राज्यकी प्रतिष्ठा और कीर्तिकी खातिर, हम इस बातके अधिकारी हैं कि गुलामी के इस अन्तिम अवशेषको बिना किसी शर्तके मिटा दिया जाये। नेटालमें यह प्रथा किसी प्रत्युपायका उपबन्ध रखे बिना ही समाप्त कर दी गई थी[१]। मॉरिशसमें भी वैसा ही किया गया है। जोहानिसबर्गकी खानोंमें चीनी मजदूरोंसे काम लेना अचानक बन्द कर दिया गया और उनको जितनी जल्दी जहाज मिले उतनी जल्दी चीन भेज दिया गया। जोहानिसबर्गकी खानें इस धक्केको सहकर अब भी चल रही हैं।

  1. १. १९११ में भारत सरकारने गिरमिटियोंकी भर्ती बन्द कर दी थी।