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वक्तव्य: गिरमिट-प्रथाके उन्मूलनपर

जबतक उपनिवेश कार्यालय तथा सम्बन्धित साम्राज्यीय उपनिवेश मिलकर ऐसी नई शर्तें तैयार नहीं कर लेते जिनके अनुसार मजदूरोंका उपनिवेशोंमें जाना बन्द नहीं कर दिया जाता; जबतक उपनिवेशोंमें समुचित संरक्षण नहीं दिये जाते तथा जबतक उन्हें अपनेको परिवर्तनोंके अनुकूल ढालनेका पर्याप्त अवकाश नहीं मिल जाता। यह अवकाश अवश्य ही उन परिस्थितियों और अवस्थाओंपर निर्भर करेगा जिनके बारेमें इस समय हमारी जानकारी अपूर्ण ही है।

हममें से जो इस प्रथाके बारेमें कुछ भी जानते हैं उन्हें मालूम है कि ऐसी शर्तें जो बागान-मालिकोंके लिए आर्थिक दृष्टिसे और हमारे लिए नैतिक दृष्टिसे उचित हों, ढूंढ़ निकालना प्रायः असम्भव है। हम समझते थे कि सरकारको स्वतः ही यह बात मालूम हो जायेगी, और इस बातको दृष्टिमें रखते हुए कि लॉर्ड हार्डिजने प्रथाका हार्दिक विरोध किया था, इसका अन्त करनेके बारेमें सरकारका भी विचार वही होगा जो हमारा है। किन्तु अब हमारे सामने एक भिन्न स्थिति आ खड़ी हुई है। लगभग एक वर्ष बीत चुकनेके बाद अब हमें यह मालूम हुआ है, फीजीके बागान-मालिकोंको विश्वास दिलाया गया है कि उनके लिए यह प्रथा और पाँच वर्षतक कायम रहेगी तथा इस अवधिके अन्तमें भी नई शर्तोंके रूपमें जो परिवर्तन किये जायेंगे वे भी आखिरकार नाम मात्रके ही होंगे, वास्तविक नहीं। इस बारेमें श्री बोनार लॉका खरीता[१] स्पष्ट है। यह उन्होंने ४ मार्च १९१६ को फीजीके कार्यवाहक गवर्नरको लिखा है:

भारत-मन्त्रीको विश्वास है कि भारत सरकारके लिए विधान परिषद (लेजिस्लेटिव कौंसिल) में उन प्रस्तावोंको, जिनमें गिरमिट बन्द करनेपर जोर दिया जाता है, नाममात्रके सरकारी बहुमतसे, रद करते जाना सम्भव नहीं होगा। उनके विचार से इस सम्बन्धमें भारतकी प्रबल और व्यापक भावनाके कारण यह प्रश्न नितान्त आवश्यक बन जाता है, और वे इस परिणामपर पहुँचे हैं कि गिरमिटियोंका प्रवास निश्चित रूपसे बन्द कर दिया जाना चाहिए।

इसके बाद वे कहते हैं:

यद्यपि भारत सरकार तथा भारत-मन्त्रीने जो निर्णय किया है वह सम्बन्धित उपनिवेशोंकी वृष्टिसे खेदजनक है, फिर भी मैं स्वीकार करता हूँ कि इस प्रश्नपर अन्तिम निर्णय करना भारत-सरकारके हाथमें रहना चाहिए।

इस प्रकार इस प्रश्नपर मानवताकी दृष्टिसे विचार करना उपनिवेशोंका काम नहीं है, यह अप्रत्यक्ष रूपसे मान लिया गया है।

अब उसी भ्रम-निवारक खरीतेसे लिये गये इस सारगर्भित अनुच्छेदपर भी ध्यान दीजिए:

इसपर विचार करने के लिए कि गिरमिट प्रथाके स्थानपर कौन-सी प्रथा लागू की जाये, मैंने एक अन्तविभागीय समितिकी नियुक्ति स्वीकार कर ली है।[२]इस प्रथाको

  1. १. ऐन्ड्यू बोनार लो (१८५८-१९२३); ब्रिटिश राजनयिक, अनुदार दलीय नेता, उपनिवेश मन्त्री और बादमें कोष-मन्त्री तथा प्रधानमंत्री।
  2. २. यहाँ मूलमें कुछ शब्द मिटे हुए हैं।