पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/३७४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३४०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह अभियान इलाहाबादसे आरम्भ हुआ; मद्रास, पूना आदिमें सभाएँ हो चुकी हैं और अब हम भी इसी उद्देश्यसे यहाँ इकट्ठे हुए हैं। इस लड़ाईके लिए श्री एन्ड्रयूजने अपना जीवन समर्पित कर दिया है। श्री गोखलेको उनमें सम्पूर्ण विश्वास था और उन्हींके अनुरोधपर वे तथा पियर्सन परिस्थितिकी जाँच करनेके लिए फीजी गये थे। उनके पास ३०० पौंडकी जो पूंजी थी, उन्होंने उसे लाहौरके सत्याग्रह कोषमें दे डाला है। अब वे ‘रेवरैंड’ नहीं कहलाना चाहते, अपितु रवीन्द्रनाथ ठाकुरका शिष्य कहलाने में अपना सम्मान समझते हैं। श्री पोलकको आप जानते ही हैं। वे जवान हैं और यदि आप जवान लोग, जितना वे करते हैं उसका दसवाँ हिस्सा भी करने लगें, तो हमें तत्काल स्वराज्य मिल जाये।

[गुजरातीसे]
प्रजाबन्धु, ११-२-१९१७

२४६. वक्तव्य: गिरमिट-प्रथाके उन्मूलनपर

[फरवरी ७, १९१७ के बाद]

इसमें कोई सन्देह नहीं कि हम अपने सम्मानकी रक्षाके लिए घोर संघर्षमें संलग्न हैं। और यदि हम सावधान न रहें तो लॉर्ड हार्डिजने गिरमिट-प्रथाके जल्दी ही समाप्त हो जानेका जो वादा किया था वह व्यर्थ हो सकता है। वाइसरॉयकी हालकी घोषणा-[१]से यह आशंका दूर हो गई जान पड़ती है कि इस प्रथाकी अवधि सम्भवतः ५ वर्षके लिए और बढ़ा दी जायेगी और जैसा कि पूनामें सर रामकृष्ण भाण्डारकरने बताया था, इसका अर्थ होगा वस्तुतः दस वर्ष। लॉर्ड चेम्सफोर्डने हमें जो आश्वासन दिया उसके लिए हम उनके कृतज्ञ हैं। अंग्रेज सज्जन श्री सी० एफ० ऐन्ड्रयूजने इस मामलेमें हमारा मार्गदर्शन किया है; उसके लिए हम उनके भी कृतज्ञ हैं। जैसे ही उन्हें फीजीसे यह सूचना मिली कि उन देशोंके बागान-मालिकोंने गिरमिटकी अवधिमें पाँच वर्षकी वृद्धिको एक सुनिश्चित तथ्य समझ लिया है, वैसे ही वे शान्तिनिकेतनमें अपनी रोग-शय्या तथा अपना विश्राम छोड़कर खड़े हो गये और उन्होंने हमें हमारे कर्त्तव्यके प्रति सजग कर दिया।

किन्तु यदि एक बादल, जिससे हमारी आशाओंपर पानी पड़नेका भय था, ओझल हुआ सा जान पड़ता है तो उतना ही खतरनाक दूसरा बादल क्षितिजपर उठता दिखाई दे रहा है। लॉर्ड हार्डिजने गत मार्चमें[२] उपर्युक्त गिरमिट प्रथाके उन्मूलनके लिए जो शर्तें रखी थीं वे इस प्रकार हैं:

किन्तु महामहिमकी सरकारकी ओरसे भारत मन्त्रीने हमें यह स्पष्ट करनेके लिए कहा है कि तबतक मजदूरोंकी भर्तीकी वर्तमान प्रथा निश्चित रूपसे कायम रखी जायेगी,

  1. १. शाही विधान परिषदमें ७-२-१९१७ को दिये गये भाषण में
  2. २. शाही विधान परिषद् २० मार्च, १९१६ को मालवीयजीके उस प्रस्तावको स्वीकार करते हुए जिसमें गिरमिट प्रथाको रद करनेका अनुरोध किया गया था।