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२४५. भाषण: अहमदाबादको गिरमिट-विरोधी सभामें[१]

फरवरी ४, १९१७

जिस तरह आज इस प्रथाके खिलाफ अपना विरोध प्रकट करनेके लिए पुरुष इकट्ठे हुए हैं उसी प्रकार कल सठोदरा नागरोंके[२] महादेव मन्दिरमें स्त्रियोंकी ऐसी ही एक सभा होगी। स्त्रियोंकी इन सभाओंका आरम्भ कानपुरसे हुआ है। श्री पोलक और श्री ऐन्ड्रयूज कहते हैं कि उपनिवेशोंमें स्त्री-मजदूरोंको अनेक और भारी कष्ट उठाने पड़ते हैं अतः उसके खिलाफ विरोधकी आवाज उठानेमें स्त्रियोंको भी भाग लेना चाहिए। गिरमिटमें बँधकर गई हुई स्त्रियोंको मैंने नेटालमें देखा है और इसलिए मुझे उनके दुःखोंका अनुभव है। गिरमिट (एग्रीमेंट) अंग्रेजी भाषाका शब्द है और उसका अर्थ है लिखित करारसे बँधकर मजदूरी करना। किन्तु उपनिवेशोंमें रहनेवाले देशी मजदूर ‘गिरमिटिया’ का अर्थ गुलामीमें पड़ा हुआ आदमी ही करते हैं क्योंकि वे अपनी स्थितिको गुलामसे किसी भी तरह बेहतर नहीं देखते। अंग्रेज जनताने आन्दोलन चलाकर जब ‘व्हाइट स्लेव ट्रैफिक’ यानी गुलामीका कानून रद कराया तब अंग्रेज बागान-मालिकों आदिको गुलामोंकी तरह काम करनेके लिए भिन्न जातीय लोगोंकी जरूरत महसूस हुई। अब वे इस तरहके गुलाम नीग्रो लोगोंमें से और हम लोगोंमें से लेते हैं । जैसा श्री कर्टिस कहते हैं,[३]हमें वे नीग्रो लोगोंसे थोड़ा ही सुधरा हुआ मानते हैं। करारसे बाँधकर मजदूरोंको ले जानेका यह कानून आजसे ५० वर्ष पहले बनाया गया था। उसके फलस्वरूप उपनिवेशोंमें भारतीयोंकी स्थिति गुलामोंकी स्थिति जैसी ही हो गई है। स्वर्गीय श्री विलियम हंटरने खुद इसे गुलामी कहकर इसका बखान किया। गुलामीके इस कानूनको रद करनेकी पहली आवाज सन् १८९६ में उठी थी। उस समय उसका कोई विशेष परिणाम नहीं निकला; १९११ तक स्थिति ज्योंकी-त्यों बनी रही। १९११ में सिर्फ नेटालमें यह प्रथा बन्द हुई। नेटालकी अपेक्षा फिजीमें भारतीय मजदूरोंकी स्थिति ज्यादा खराब है। नेटालमें [इस प्रथाके खिलाफ] लोगोंने जोरदार आवाज भी उठाई थी, फिजीमें वैसा-कुछ नहीं है। गत वर्ष लॉर्ड हार्डिज़ने कहा था[४] कि यह कानून शीघ्र ही रद कर दिया जायेगा। उस समय हमने ऐसा सोचा था कि अब यह एकाध वर्षमें रद हो जायेगा। परन्तु डेढ़ वर्षके बाद खबर सुनी जा रही है कि अभी तो वह और पाँच वर्षतक रहेगा और इसके बाद वे देखेंगे कि क्या किया जाये। इस खबरसे हमारे हृदयोंमें हमारे [प्रवासी] देशबन्धुओंके दुःखोंकी याद ताजा हो उठी है; और हमारा कर्तव्य है कि हम इस कानूनको रद करानेके लिए आवाज बुलन्द करें।

  1. १. अध्यक्षके रूपमें दिया गया भाषण; सभामें श्री ऐन्डयूज और श्री पोलक भी बोले थे।
  2. २. गुजरात में ब्राह्मणोंकी एक उपजाति।
  3. ३. देखिए “वक्तव्य : लापनेल कर्टिसके पत्रके सम्बन्ध में”, १४-१-१९१७ के पूर्व।
  4. ४. देखिए अगला शीर्षक।