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शिक्षाके माध्यमके रूपमें देशी भाषाओंका प्रयोग: एक प्रस्तावना

 

मेरा खयाल है कि समारोहके बाद कामकाजके बारेमें दो बैठकें हों। दोनों एक ही दिन हों; किन्तु दोनोंके बीच पर्याप्त व्यवधान रहे। पहलीमें केवल सामान्य मित्र ही आयें। दूसरीका स्वरूप अधिक व्यापक हो और उसमें तिलकका दल भी आ सके।

मुझे आशा है, गिरमिट सम्बन्धी सभा[१] सफल होगी।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७८९) की फोटो-नकलसे।

२४४. भारतीय विद्यालयों तथा महाविद्यालयोंमें शिक्षाके माध्यमके रूपमें देशी भाषाओंका प्रयोग: एक प्रस्तावना

[फरवरी १, १९१७][२]

डॉ० प्रा० जी० मेहताकी ‘सेल्फ गवर्नमेंट सीरीज’ (स्वशासन-पुस्तक माला) की ‘वर्नाक्युलर्स एज मीडिया ऑफ इंस्ट्रक्शन इन इंडियन स्कूल्स ऐंड कॉलेजेज’ (भारतीय विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में शिक्षाके माध्यमके रूपमें देशी भाषाओंका प्रयोग) नामक पुस्तिका संख्या १ की श्री गांधी द्वारा लिखी गई भूमिका नीचे दी जाती है ...

यह आशा की जाती है कि अंग्रेजी पढ़े-लिखे भारतीय डॉ० मेहताकी इस निःस्वार्थ-भावसे लिखी गई पुस्तिकाकी ओर गम्भीरतापूर्वक ध्यान देंगे। उन्होंने यह सामग्री मद्रासके ‘वेदान्त केसरी’ के लिए लिखी थी और अब वह भारत-भरमें प्रचारित करनेके लिए वर्तमान रूपमें मुद्रित की गई है। शिक्षाके माध्यमके रूपमें देशी भाषाओंके उपयोगका प्रश्न राष्ट्रीय महत्त्वका प्रश्न है। देशी भाषाओंकी उपेक्षाका अर्थ है राष्ट्रीय आत्मघात। हम अंग्रेजीके बहुतसे पृष्ठपोषकोंको यह कहते सुनते हैं कि शिक्षाके माध्यमके रूपमें अंग्रेजीको जारी रखा जाये। वे इस तथ्यकी ओर संकेत करते हैं कि अंग्रेजी पढ़े-लिखे भारतीय सार्वजनिक कार्य और देशसेवाके एकमात्र अभिभावक हैं। यदि ऐसा न होता तो वह नितान्त अनुचित बात होती, क्योंकि इस देशमें जो भी शिक्षा दी जाती है केवल अंग्रेजीके माध्यमसे ही दी जाती है। फिर भी, तथ्य यह है कि परिणाम हमारी शिक्षामें दिये जानेवाले समयके अनुपातमें तो कदापि प्रतिफलित नहीं हुआ। जनतापर इसका प्रभाव नहीं पड़ता। किन्तु मुझे डॉक्टर मेहताने क्या कहा है मैं इसके बारेमें अभी कोई अन्दाज नहीं दूँगा। उनमें सच्ची लगन है। वे जैसा अनुभव करते हैं वैसा ही लिखते हैं। उन्होंने पक्षापक्षपर विचार किया है और अपने तर्कोंकी पुष्टिके लिए बहुतसे प्रमाण एकत्र किये हैं। इस विषयमें सबसे ताजी राय वाइसरॉयकी है। यद्यपि परमश्रेष्ठ कोई हल निकालनेमें असमर्थ हैं, फिर भी वे हमारे विद्यालयोंमें देशी भाषाओं द्वारा शिक्षा

  1. १. यह बम्बईमें ९ फरवरी, १९१७ को हुई थी।
  2. २. छपी गुजराती भूमिका (एस० एन० ६३४१) में यही तारीख दी गई है।
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