चलन तथा आग लग जानेपर या ऐसी ही दूसरी दुर्घटनाओंमें अपना-अपना काम चुपचाप अच्छी तरह करनेकी तालीम दी जायेगी।
अपने आरोग्यकी रक्षा और सामान्य बीमारियोंके घरेलू इलाजोंकी शिक्षा तथा इसके सिलसिलेमें शरीर-रचना तथा वनस्पतियोंकी आवश्यक जानकारी दी जायेगी।
बौद्धिक शिक्षणमें गुजराती, मराठी तथा हिन्दी और संस्कृत अनिवार्य रूपसे सिखाई जायेंगी। उर्दू तथा बँगला भी सिखाई जायेंगी।
पहले तीन वर्षोंमें अंग्रेजी नहीं सिखाई जायेगी।
इसके सिवा गणितशास्त्र (अंकगणित, बीजगणित और भूमिति) की शिक्षा दी जायेगी। पहाड़े, देशी बही-खाता और प्रचलित तोलकी जानकारी तो प्रारम्भमें ही दी जायेगी। बाकी पढ़ाई क्रमशः होगी।
इतिहास, भूगोल, खगोल-विद्याके प्रारंभिक सिद्धान्त तथा रसायनशास्त्र के प्रारंभिक सिद्धान्त सिखाये जायेंगे।
धार्मिक शिक्षामें धर्मके सामान्य सिद्धान्त सिखाये जायेंगे और हमें ऐसी आशा है कि शिक्षक अपने आचरणके द्वारा यह बतायेंगे कि धर्मका मर्म तो चरित्रमें है।
अन्तिम कक्षा तक सारा शिक्षण गुजरातीमें ही होगा और प्राथमिक वर्षोंमें शिक्षण अधिकांशतः मौखिक होगा। उद्देश्य यह है कि बच्चोंके लिखना-पढ़ना सीखने तक कहानियोंके रूपमें बातचीतके द्वारा उन्हें बहुत कुछ बता दिया जाये; डाँट-फटकार या तिरस्कार सूचक छिः छिः आदि शब्दोंसे उनके खिलते हुए मनका दमन न किया जाये, बल्कि [प्रेम-पूर्वक] उसका विकास किया जाये तथा उन्हें खेलते-कूदते सामान्य ज्ञान दिया जाये।
स्पष्टीकरण
अभी तो हमारा विचार ऐसा है कि [इस पद्धतिके अनुसार] दस वर्ष तक शिक्षा लेनेवालेका ज्ञान लगभग एक अच्छे ग्रेजुएट-जितना हो जायेगा। मतलब यह कि विद्यार्थी-पर अंग्रेजी सीखनेका बोझ कम रहेगा और इस तरह जो समय बचेगा उसमें उसे वह सारा उपयोगी ज्ञान दे दिया जायेगा जो किसी ग्रेजुएटको मिलता है। विद्यार्थीको परीक्षाके भयसे मुक्त कर दिया जायेगा। विद्यार्थियोंकी प्रगतिकी जाँच अवश्य होती रहेगी किन्तु शालाके ही शिक्षकोंकी मारफत विद्यार्थियोंके शिक्षणका सच्चा माप तो यह होगा कि शालासे निकलनेके बाद विद्यार्थी अपनी शक्तिका व्यवहारमें कैसा उपयोग करता है। विद्या प्राप्तिका उद्देश्य नौकरी है, इस प्रचलित भ्रमको दूर करनेके लिए प्रत्येक अवसरका उपयोग किया जायेगा। और अन्तमें, हम आशा करते हैं, शालामें आनेवाले विद्यार्थीके मनमें, कुछ ही वर्षोंमें, ऐसा आत्मविश्वास पैदा हो जायेगा कि अपनी आजीविका कमा सकनेके विषयमें उसे कोई शंका या भय रहेगा ही नहीं। जो विद्यार्थी शालामें पाँच वर्ष तक रहेगा उसे, यदि उसकी इच्छा होगी तो, शालासे ही सम्बन्धित कार्योंमें वेतन देकर नियुक्त कर दिया जायेगा। यह संस्था कुछ कारखानोंके साथ ऐसा सम्बन्ध बनायेगी कि वह वहाँ कोई जीवनोपयोगी धंधा सीख सके और स्वतंत्र धंधा करनेके इच्छुक व्यक्तियोंको धंधोंमें लगवा दे। दस वर्षकी पढ़ाई के बाद यदि कोई विद्यार्थी