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२४२. राष्ट्रीय गुजराती शाला

[जनवरी १८, १९१७ के बाद][१]

विवरण-पत्रिका

कई वर्षोंसे कुछ मित्रोंको और मुझे ऐसा लगता रहा है कि हमारी मौजूदा शिक्षा राष्ट्रीय नहीं है और उससे लोगोंको जो लाभ मिलना चाहिए वह नहीं मिलता। इस शिक्षाके फलस्वरूप हमारे बालकोंका तेज नष्ट हो जाता है――वे कुम्हला जाते हैं। उनमें पुरुषार्थकी शक्ति नहीं रहती और वे जो ज्ञान प्राप्त करते हैं समाजमें उसका प्रसार नहीं होता, उनके कुटुम्बमें भी नहीं होता। यह शिक्षा ग्रहण करनेमें हमारे युवकों के मनमें उद्देश्य केवल नौकरी प्राप्त करने, अपनी आर्थिक स्थिति सुधारनेका ही होता है। शिक्षाकी योजना जनसमाजकी आवश्यकताओंको ध्यानमें रखकर की जानी चाहिए। यह शिक्षाका एक अनिवार्य सूत्र है। हमारे स्कूलोंमें इस विचारको कोई स्थान ही नहीं दिया गया है।

अपनी यात्राओंके प्रसंगमें हिन्दुस्तानमें मैं जहाँ-जहाँ गया हूँ मैंने नेताओंके साथ इस प्रश्नपर चर्चा की है और लगभग सभीने निरपवाद रूपसे यह स्वीकार किया है कि शिक्षाकी पद्धतिमें परिवर्तन होना चाहिए।

इस सम्बन्धमें सरकारके भरोसे बैठे रहना केवल कालक्षय करना होगा। सरकार तो लोकमतकी राह देखेगी; विदेशी होनेके कारण धीरे-धीरे कदम उठायेगी; फिर उसके सलाहकार नादान या स्वार्थी भी हो सकते हैं। ऐसे अनेक कारणोंसे संभव है, प्रचलित पद्धतिमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होने तक बहुत समय बीत जाये। और इसमें जितना समय जायेगा, प्रजाका उतना ही अधिक नुकसान होगा।

लेकिन हमारा यह आशय नहीं है कि सरकारकी मारफत हमें कोई काम करना ही नहीं है। सरकारको अर्जियाँ भेजने और [इस प्रश्नपर] लोकमत इकट्ठा करने दिया जाये, हमारा विरोध नहीं है। किन्तु अर्जीका सर्वोत्तम रूप तो यही है कि हम इस चीजको करके दिखा दें; लोकमतके निर्माणके लिए भी सीधा रास्ता यही है। इसलिए कुछ विद्वानोंके साथ दूसरे विचार-विमर्श करनेके बाद एक राष्ट्रीय शाला खोलनेका निश्चय हुआ है।

शिक्षणका स्वरूप

इस शालामें शारीरिक, बौद्धिक और धार्मिक शिक्षण दिया जायेगा।

शारीरिक शिक्षणके अन्तर्गत खेती-बाड़ी और बुनाईका काम सिखाया जायेगा और इससे सम्बद्ध बढ़ईगिरी और लुहारीके औजारोंका उपयोग भी सिखाया जायेगा। इनसे बालकोंको [पर्याप्त] शारीरिक व्यायाम मिल जायेगा। तथापि उन्हें मनोरंजक खेल[२] तथा कवायद और कवायदके एक अंगके रूपमें टोलियोंमें [सबके साथ कदम मिलाकर]

  1. १. देखिए पिछला शीर्षक, “पत्र: कल्याणजी मेहताको“, १८-१-१९१७।
  2. २. मूलमें यहाँ कुछ शब्द बहुत अस्पष्ट हैं।