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२३२. भाषण: मुस्लिम लीगके सम्मेलनमें[१]

लखनऊ
दिसम्बर ३१, १९१६

आज सवेरे मुस्लिम लीगको बैठक फिर हुई, उपस्थिति कलकी जैसी ही थी। गत वर्ष बम्बईमें सुधार समिति नियुक्त की गई थी उसकी रिपोर्ट लीगके मन्त्री श्री वजीर हसनने पेश की। यह रिपोर्ट इस वर्ष राष्ट्रीय महासभाके समक्ष प्रस्तुत रिपोर्टकी जैसी ही थी।

इसके अनन्तर अध्यक्ष जिन्नाने एक प्रस्ताव रखा जिसका आशय यह था कि यह सम्मेलन उपनिवेशोंमें भारतीयोंके साथ किये जानेवाले व्यवहारके प्रति तीव्र असन्तोष प्रकट करता है।

इसके बाद श्री गांधीसे जो सभास्थलमें उपस्थित थे, व्याख्यान देनेको कहा गया। उन्होंने कहा:

यदि आप अपने इस प्रस्तावको कि भारतकी राष्ट्रभाषा उर्दू रहे, कार्यान्वित करना चाहते हैं तो आप लोगोंको अपनी कार्रवाई उर्दूमें करनी चाहिए। आपको उचित है कि आप लोग हिन्दू साहित्यमें भी कुछ दिलचस्पी लिया करें। इससे आप लोग हिन्दू समाजके साथ स्थायी मैत्रीभाव रखनमें समर्थ होंगे। उपनिवेशोंमें हिन्दू और मुसलमान सदासे ही मिल-जुलकर काम करते आये हैं और यदि भारतमें भी वैसा ही किया गया तो हमारी मनोकामना शीघ्र पूरी हो सकती है। आप लोग जो प्रचार-कार्य करते हैं, उसे करनेमें आप सरकारसे डरना छोड़ दें, क्योंकि अंग्रेजोंका स्वभाव ही यह है कि वे जोरावरके आगे झुकते हैं और निर्बलोंपर सवारी कसते हैं।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, ३-१-१९१७

२३३. पत्रका अंश[२]

[१९१६][३]

...मैं रखना। अभी तुम्हारा कार्य समस्त कामकाजकी देखरेख करना, सब लोगोंको काम सौंपना, और हिसाब पूरा करके फूलचन्दको[४]हिसाब-किताब रखना सिखा देना है। छाछ सबको मुआफिक नहीं आती यदि सब लोग पतली लपसी ही चाहते हैं तो

  1. १. लखनऊमें
  2. २. पहले दो पृष्ठ उपलब्ध नहीं हैं।
  3. ३. पत्र १९१६ में लिखा गया जान पड़ता है। ठीक तिथि निश्चित नहीं की जा सकती।
  4. ४. गुजरातके एक राजनैतिक और रचनात्मक कार्यकर्ता फूलचन्द बापूजी शाह।