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२२८. भाषण: लखनऊ कांग्रेसमें

दिसम्बर २८, १९१६

श्री मो० क० गांधीने लखनऊ में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके ३१ वें अधिवेशनमें २८ दिसम्बर, १९१६ को ११ वाँ प्रस्ताव पेश करते हुए कहाः

सभापति महोदय, प्रतिनिधि बन्धुओ, बहनो और भाइयो, मैं देखता हूँ, मेरे तमिल भाइयोंने मुझसे अपील की है कि मैं उनके सम्मुख अंग्रेजीमें बोलूँ और मैं उनके प्रति-आग्रहको अंशतः स्वीकार कर रहा हूँ। किन्तु मैं बदलेमें उनसे यह अपील करना चाहता हूँ कि वे अगले वर्ष-भरमें राष्ट्रभाषा सीख लें। यदि उन्होंने अगले वर्ष तक राष्ट्रभाषा नहीं सीखी――मैं जानता हूँ कि जब भारतको स्वराज्य दे दिया जायेगा तब कौन-सी भाषा राष्ट्रभाषा होगी (तालियाँ) यदि उन्होंने अगले वर्ष में ऐसा नहीं किया तो जहाँतक मेरा सम्बन्ध है मैं अंग्रेजीमें नहीं बोलूंगा। अभी मैं पहले अंग्रेजीमें प्रस्ताव पढूँगा और फिर उसीको हिन्दीमें। प्रस्ताव इस प्रकार है:

(क) यह कांग्रेस जोर देकर अनुरोध करती है कि आगामी वर्षके अन्दर ही गिरमिटिया मजदूरोंकी भरतीपर प्रतिबन्ध लगाकर गिरमिटियोंके प्रवासको

बन्द कर देना चाहिए।

(ख) कांग्रेसके विचारमें यह अत्यन्त वांछनीय है कि भारत-सरकार एक ऐसे प्रतिनिधि भारतीयको, जो भारतीय जनताके विचारोंका प्रतिनिधित्व करनेवाली संस्थाओंके परामर्शसे चुना गया हो, निकट भविष्यमें इस प्रश्नपर विचार करनेके लिए लन्दनमें होनेवाले अन्तविभागीय सम्मेलनमें भाग लेनेके लिए नियुक्त करे।
(ग) यह कांग्रेस हार्दिक प्रार्थना करती है कि श्री मार्जोरीबैंक्स तथा माननीय श्री थम्बी मराक्यार और अन्तर्विभागीय समितिकी रिपोर्टको, कोई कार्रवाई करनेसे पहले, आम लोगोंके सूचनार्थ प्रकाशित कर दिया जाये।

संवाददाता तथा प्रतिनिधिगण, जिनके पास प्रस्तावकी प्रतियाँ हैं ध्यानपूर्वक देखें कि धारा (क) में एक शाब्दिक परिवर्तन किया गया है――प्रस्तावमें ‘दरम्यान’ के स्थान पर ‘अन्दर ही’ कर दिया गया है। ऐसा एक मित्रके अनुरोधपर किया गया है। उनको डर था कि सरकार यह सोच सकती है कि यदि गिरमिट प्रथा आगामी वर्ष बन्द रखी जाये तो हम सन्तुष्ट हो जायेंगे, जब कि हमारा मतलब है उसे हमेशाके लिए समाप्त कर बाना। धारा (ख) में भी आप देखेंगे कि 'जनताके विचार' से पहले ‘भारतीय’ शब्द जोड़ दिया गया है।

श्री गांधीने प्रस्तावको हिन्दीमें पढ़ा और उसके उद्देश्यपर प्रकाश डाला।

[अंग्रेजीसे]
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके ३१ वें अधिवेशनकी रिपोर्ट,पृष्ठ ६२-३।