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भाषण: इलाहाबादमें प्राचीन और अर्वाचीन शिक्षापर

नहीं है कि शिक्षित लोग सर्वसाधारणकी दशाके प्रति हमदर्दी नहीं रखते। बल्कि मैं यह स्वीकार करता हूँ कि कांग्रेस आदि बड़े-बड़े सार्वजनिक आन्दोलन इन्हीं लोगोंके चलाये हुए हैं और वे ही उनका संचालन कर रहे हैं। लेकिन साथ ही मैं यह कहे बिना भी नहीं रह सकता कि यदि लोगोंको उनकी मातृभाषामें शिक्षा दी गई होती तो इतने वर्षों में और भी अधिक काम होता और विशेष उन्नति हो गई होती। यह दुर्भाग्यको ही बात है कि लोग यही मानने लगे हैं कि जिस रास्तेपर हम लोग चल रहे हैं उसके सिवा हमारे लिए और कोई रास्ता है ही नहीं। लोग अपने आपको बिलकुल असहाय दशामें पाते हैं। लेकिन अपनेको लाचार मान बैठना सर्वानगी नहीं है।

इसके उपरान्त महात्मा गांधीने प्राचीन शिक्षा-प्रणालीका वर्णन करते हुए कहा: प्राचीन कालमें गाँवके साधारण गुरु जो आरम्भिक शिक्षा दिया करते थे उससे विद्याथियोंको उन सब बातोंका ज्ञान हो जाता था जो कि उनके पेशेके लिए आवश्यक थीं जो लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करते थे वे अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र तथा धर्मशास्त्रसे अच्छी तरह परिचित हो जाते थे। प्राचीनकालमें शिक्षापर किसी प्रकारका प्रतिबन्ध नहीं था। शिक्षाका प्रबन्ध राज्यकी ओरसे नहीं किया जाता था, बल्कि वह प्रबन्ध ब्राह्मणोंके हाथमें रहता था, जो केवल प्रजाके कल्याणकी ओर ही ध्यान रखकर शिक्षा प्रणालीका स्वरूप निर्मित करते थे। उसका आधार संयम और ब्रह्मचर्य था। यह इसी शिक्षा-प्रणालीका प्रताप था कि हजारों वर्षोंसे अनेक प्रकारके आघात सहनेपर भी भारतीय सभ्यता आजतक जीवित है जब कि यूनान, रोम तथा मिस्त्रकी सभ्यता लुप्त हो गई है। इसमें सन्देह नहीं कि इस समय भारतमें एक नई सभ्यताकी हवा बह निकली है। लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि थोड़े ही समयमें यह बात खत्म हो जायेगी और फिरसे भारतीय सभ्यताका प्रचार होगा। प्राचीन कालमें जीवनका आधार संयम था, पर आजकल भोग-विलास ही प्रधान है। इसका फल यह हुआ है कि लोग बलहीन और कायर हो गये हैं और सत्यको भूल बैठे हैं। हम लोग इस समय दूसरी सभ्यताके फेरमें पड़े हुए हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपनी नई परिस्थितिके अनुकूल अपनी पुरानी सभ्यतामें कुछ फेरफार कर लें, लेकिन हमारी जिस प्राचीन सभ्यताको अनेक यूरोपीय विद्वान भी सर्वश्रेष्ठ मानते हैं उसमें हमें कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं करना चाहिए। कहा जा सकता है कि पाश्चात्य सभ्यताकी भौतिक शक्तियोंसे टक्कर लेने के लिए उस सभ्यताके उपायों और साधनोंको ग्रहण करना आवश्यक है, लेकिन भारतीय सभ्यताका प्रधान आधार आध्यात्मिक बल है; वह भौतिक बलसे कहीं बढ़-चढ़कर है। भारतवर्ष प्रधानतः धर्म-भूमि है। उसे धर्म-भूमि बनाये रखना भारतवासियोंका सबसे बड़ा कर्त्तव्य है। उन्हें अपनी आत्मासे――ईश्वरसे ――बल ग्रहण करना चाहिए। यदि हम लोग इसी मार्गपर चलते रहेंगे, तो जिस स्वराज्यकी हमें इतनी अधिक आकांक्षा है और जिसके लिए हम जुटे हुए हैं, वह स्वराज्य हमें स्वतः मिल जायेगा।

[अंग्रेजीसे]

लीडर, २७-१२-१९१६

महात्मा गांधी हिज लाइफ राइटिंग्ज ऐंड स्पीचेज
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