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भाषण: म्योर कॉलेज, इलाहाबादमें

नये वृष्टिकोणसे विचार किया करें। ऐसा करनेसे अर्थशास्त्री और भारतीय जनता दोनों ही लाभान्वित होंगे। श्री हिगिनबॉटम वास्तविक अर्थशास्त्रका अध्ययन कर रहे हैं और भारतके लिए इसी प्रकारका अर्थशास्त्र बहुत जरूरी है। वे अपने अध्ययनको क्रमशः कार्यरूपमें परिणत कर रहे हैं और चाहे हम विद्यार्थी हों या शिक्षक हमारे लिए इसी नीतिपर चलते जाना सर्वोत्तम होगा। एक विद्यार्थीके प्रश्नोंके उत्तरमें गांधीजीने कहा, मनुष्यको चाहिए कि वह अपने निजी स्वार्थ के लिए धन-संग्रह न करे, परन्तु यदि वह भारतके करोड़ों निवासियोंके न्यासीकी भाँति धन-संग्रह करना चाहता है तो मैं कहूँगा कि वह जितना चाहे उतना धन इकट्ठा कर सकता है। साधारणतया अर्थशास्त्री अर्थशास्त्र के नियम अमीर लोगोंके (लाभके) लिए रचते हैं। ऐसे अर्थशास्त्रियोंका में सदा विरोध करूँगा।

अब में दूसरे प्रश्नको लेता हूँ। प्रश्न यह पूछा गया है कि क्या कारखानोंको मिटाकर कुटीर उद्योगोंको चालू करना ज्यादा अच्छा न होगा। मैं इस सुझावको पसन्द करता हूँ, परन्तु अर्थशास्त्रियोंको चाहिए कि सबसे पहले धैयपूर्वक अपनी देशी संस्थाओंपर नजर डालें। यदि वे निकम्मी हैं, तो उन्हें समूल नष्ट कर देना चाहिए और यदि उनमें सुधार और उन्नतिकी गुंजाइश है तो उपाय ढूंढ़ निकालने चाहिए और उन्हें विकसित करना चाहिए।

दूसरे देशोंके साथ सम्पर्क स्थापित करनेके बारेमें मेरी धारणा तो यह है कि हमारे देशवासियोंकी दूसरे देशोंके निवासियोंके सम्पर्कसे रती-भर भी नैतिक उन्नति होना जरूरी नहीं है। उदाहरणके तौरपर दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए भारतीयोंकी दशापर विचार कीजिए। यातायातके द्रुतगामी साधनों जैसे स्टीमर या रेलगाड़ियों इत्यादिने अनेक आदर्शोंको उनकी जगहोंसे हिला दिया है और बहुत अनर्थका सृजन किया है।

और इस प्रश्नके उत्तरमें कि किसी व्यक्तिको कमसे-कम कितना और अधिकसे-अधिक कितना धन रखना चाहिए श्री गांधीने कहा――‘किचित्मात्र नहीं’ जैसा अधिक कितना धन रखना चाहिए श्री गांधीने कहा――‘किचित्मात्र नहीं’ जैसा कि ईसा मसीह, रामकृष्ण और अन्य [महापुरुष] कह गये हैं।

माननीय पण्डित मदनमोहन मालवीयन सभाको विसर्जित करते हुए श्री गांधीको उनके इतने सुन्दर भाषणके लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि जो सिद्धान्त उन्होंने [श्री गांधीने] हमारे सामने रखे हैं वे इतने ऊँचे हैं कि मैं यह आशा नहीं करता कि सभी लोग उनपर चलनेके लिए तैयार हो जायेंगे। परन्तु मैं आशा करता हूँ कि गांधीजीके इस मुख्य अभिप्रायसे कि अर्थशास्त्र सम्बन्धी सारे प्रश्नों और सिद्धान्तोंका ध्येय मानव-जातिका कल्याण होना चाहिए आप सभी सहमत होंगे।[१]
[अंग्रेजीसे]
लीडर, २५-१२-१९१६
  1. १. भाषण समाप्त होनेपर श्री चिन्तामणिने गांधीजीसे इसकी हस्तलिखित प्रति प्रकाशनार्थं ले ली थी।