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भाषण: म्योर कॉलेज, इलाहाबादमें

 

वही लेखक अनेक परिच्छेदोंमें इस बातका विवेचन करता है कि ब्रिटिश राष्ट्रकी धन-सम्पत्तिकी वृद्धिके साथ-साथ क्या दशा हुई। वह कहता है:

धन-सम्पत्तिकी इस वेगवती उन्नति तथा प्रकृतिपर हमारा प्रभुत्व स्थापित होनेके फलस्वरूप हमारी अपरिपक्व सभ्यता और हमारे दिखावटी ईसाई धर्मपर बहुत बड़ा बोझ आ पड़ा है। और यह उन्नति अपने साथ अनीतिको उसके नाना प्रकारके रूपोंमें लाई है जो उतने ही आश्चर्यजनक और अभूतपूर्व हैं जितनी कि सम्पत्तिकी वृद्धि।

आगे चलकर वे बताते हैं कि किस प्रकार आदमियों, औरतों और बच्चोंकी लाशोंपर कारखाने खड़े किये गये हैं और किस प्रकार ज्यों-ज्यों वह देश तेजीसे धनवान बनता गया त्यों-त्यों उसका नैतिक पतन होता गया। वे अपनी इस बातके प्रमाणमें अस्वच्छता, प्राणघातक व्यवसाय, जिन्सोंमें मिलावट, रिश्वतखोरी, जुआ इत्यादिका उल्लेख करते हैं। वे यह भी सिद्ध करते हैं कि ज्यों-ज्यों दौलत बढ़ती गई त्यों-त्यों न्यायमें अनंतिकता आती गई, मद्यपानके कारण मृत्यु संख्या और आत्मघातकी घटनाओं में वृद्धि हुई है, समयसे पूर्व प्रसव और तत्सम्बन्धी खराबियाँ बढ़ गई हैं और वेश्यागमनने संस्थाका रूप धारण कर लिया है। लेखकने वर्तमान अधोगतिका वर्णन इन सारगर्भित शब्दोंमें समाप्त किया है:

दौलत और निठल्लेपनके परिणामोंके दूसरे पहलुओंके बारेमें हम तलाक-अदालतोंके कार्य-विवरणसे बहुत-कुछ जान सकते हैं। मेरे एक मित्र हैं जो लन्दनमें बहुत अर्से तक रहे हैं। वे निश्चयात्मकरूपसे कहते हैं कि धनिकोंके देहाती घरोंमें और खुद लन्दन शहरमें ऐसी-ऐसी बदमाशियाँ प्रायः देखनमें आती हैं जैसी बड़ेसे-बड़े दुराचारी सम्राटोंके शासनकालमें भी न हुई होंगी। युद्धके विषयमें मुझे कुछ कहना ही नहीं है। रोम साम्राज्यके उत्थानके दिनोंसे युद्ध जल्दी-जल्दी होने लगे हैं, परन्तु निश्चय ही आज सभी सभ्य राष्ट्रोंमें युद्धके प्रति भारी अरुचि उत्पन्न हो गई है। शान्तिके पक्षमें उत्कट धार्मिक भावनाके साथ की गई घोषणाओंके संदर्भमें शस्त्रास्त्रोंके उस भंडारका विचार करें, जिसका राष्ट्रोंने संग्रह कर रखा है, तो उससे यही प्रकट होता है कि शासक-वर्गोंमें एक व्यावहारिक मार्गदर्शक सिद्धान्तके रूपमें नैतिकताका पूर्ण अभाव हो गया है।

ब्रिटिश छत्रछायामें हमने बहुत-कुछ सीखा है, परन्तु यह मेरा निश्चित मत है कि ब्रिटेन यथार्थं नैतिकताकी दिशामें कुछ भी देनेमें असमर्थ है। मेरी यह भी धारणा है कि यदि हम जागरूक न रहे तो उन सब अवगुणोंका, जिनका ब्रिटेन शिकार बना है, समावेश हो जायेगा। इसका कारण भौतिकवादसे उत्पन्न होनेवाले दोषोंके सिवा और कुछ नहीं है। हम उस सम्बन्धसे उसी दशामें लाभ उठा सकते हैं जब हम अपनी सभ्यता और अपनी नैतिकताको विचलित न होने दें अर्थात् यदि हम अपने गौरवमय अतीतकी डींग न हाँककर स्वयं अपने जीवनमें उन दिव्य गुणोंको उतारें और हमारा जीवन हमारे भूतकालकी साक्षी दे। उसी हालतमें हम उसे [ब्रिटेनको] तथा स्वयं अपनेको लाभ पहुँचा