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भाषण: म्योर कॉलेज इलाहाबादमें

निधि प्राप्त होगी। आओ इस क्रॉसको हाथमें ले लो और मेरे पीछे-पीछे चलो।” यह सुनकर वह व्यक्ति उदास हो गया और चल दिया, क्योंकि उसके पास बहुत बड़ी जायदाद थी। ईसा मसीहने इधर-उधर निगाह दौड़ाई और अपने शिष्योंसे कहा, “जिनके पास दौलत है वे ईश्वरके राज्यमें किस प्रकार प्रवेश पा सकते हैं? यह सुनकर शिष्यगण अचम्भेमें आ गये। परन्तु ईसाने उनसे बार-बार कहा, “बच्चो! जो लोग अपनी दौलत-पर भरोसा करते हैं उनके लिए ईश्वरके राज्यमें प्रवेश पाना कितना दुष्कर है। सुईके छेदसे होकर ऊँटका गुजर जाना आसान है, परन्तु धनाढ्य व्यक्तिके लिए ईश्वरके राज्यमें प्रवेश कर पाना कठिन है।” इस दृष्टान्तमें जीवनका शाश्वत नियम अत्यन्त सुन्दर शब्दों में व्यक्त है। परन्तु शिष्योंको प्रतीति नहीं हुई। आजकल भी ऐसा ही देखने में आता है। ईसा मसीहसे उन्होंने कहा जैसा कि आजकल हम कहा करते हैं, “व्यवहारमें तो यह नियम चलता नहीं है। अगर हम सब-कुछ बेच डालें, अपने पास कुछ न रखें, तो खायेंगे क्या? हमारे पास रुपया होना ही चाहिए वरना हम सामान्यरूपसे भी नीतिवान् नहीं बने रह सकते।” वे आश्चर्यचकित स्वरमें आपसमें कहने लगे, “तो फिर परित्राण किसका सम्भव है?” ईसामसीहने उनकी ओर मुखातिब होकर कहा, “मनुष्यके लिए यह असम्भव जरूर है परन्तु ईश्वरके लिए नहीं। क्योंकि ईश्वरके लिए हरएक काम सम्भव है।” उसके पश्चात् पीटरने उनसे कहा, "देखिए हम लोगोंने अपना सब कुछ त्याग दिया है। हमने आपके आदेशका पालन भी किया है।” ईसामसीहने उत्तरमें कहा――“सत्य मानो जिसने भी अपना घर, भाई-बहिन, माता-पिता, पुत्र-कलत्र, जमीन इत्यादिका मेरे तथा धर्मोके निमित्त त्याग किया हो, उसे यहाँ यह सब सौगुना मिलेगा। बेशक उसे अत्याचार सहनेके लिए भी तैयार रहना होगा――और परलोकमें मोक्ष मिलेगा। परन्तु लोगोंमें से बहुतेरे जो आज आगे हैं पीछे रह जायेंगे और पीछे की पंक्तिवाला आगे पहुँच जायेगा।” सज्जनो, नीतिका फल अथवा, यदि यह शब्द आपको ठीक लगे तो नीतिका पुरस्कार यही है।

मैंने ये वाक्य एक ऐसे धर्म-ग्रन्थसे उद्धृत किये हैं जो हिन्दू धर्मका ग्रंथ नहीं है। मैं अन्य अहिन्दू ग्रंथोंसे उपरोक्त प्रकारके वाक्य उद्धृत करनेकी परेशानीमें नहीं पडूँगा और ईसा मसीह द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तके समर्थनमें में भारतीय ऋषि-मुनियों द्वारा कहे या लिखे गये वाक्योंको, ऐसे वाक्य जो इंजील (बाइबिल) के उपर्युक्त वाक्योंसे सम्भवतः अधिक जोरदार हैं, उद्धृत करके आपको खिन्न नहीं करूँगा। प्रस्तुत प्रश्नके इस उत्तरके अनुमोदनके लिए सबसे अधिक विश्वसनीय और जोरदार प्रमाण संसारके सबसे बड़े उपेदशकोंके जीवनचरित्र हैं। ईसा मसीह, मुहम्मद, बुद्ध, नानक, कबीर, चैतन्य, शंकराचार्य, दयानन्द, रामकृष्ण ऐसे व्यक्ति थे जिनका लाखों नरनारियोंके हृदयोंपर प्रभाव था और जिन्होंने असंख्य व्यक्तियोंका चरित्र गढ़ा है। ये महापुरुष इस पृथ्वीपर अवतरित हुए, और उनके अवतरित होनेसे विश्वकी नैतिकतामें समृद्धि हुई; ध्यान रहे कि ये सब ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने जानबूझकर गरीबीको अपनाया था।

यदि मेरा यह विश्वास न होता कि जिस हद तक हम आधुनिक भौतिकवादके पीछे दीवाने बने रहेंगे उस हद तक हम उन्नतिके मार्ग से दूर रहकर अवनतिकी दिशामें अग्रसर होते जायेंगे, तो मैंने आज जो इस प्रकार विस्तारपूर्वक अपनी बात आपके