चाहते हैं। ट्रान्सवाल भारतीय महिला संघ [ट्रान्सवाल इंडियन वीमेन्स एसोसिएसन] का रुपया मेरे पास नहीं है। वह तुम्हारे पास जो रकम शेष है उसीमें है। तुम्हारा मतभेद हो तो भी तुमको कुमारी श्लेसिनके साथ सलाह करके उस वाजिब रुपयेको बैंकमें अलग जमा कर देना चाहिए और रसीद कुमारी श्लेसिनको दे देनी चाहिए। सदस्य चाहते हैं कि इसे बैंकमें जमा कर दिया जाये ताकि ब्याज मिले और उनका यह सोचना ठीक है।
पोलक मद्रास गये हैं। मैं कांग्रेसके अधिवेशनमें जानेकी तैयारी कर रहा हूँ। मैं बहुतसे विषयोंपर लिखना चाहता हूँ, किन्तु प्रेस या फीनिक्सके बारेमें नहीं। किन्तु इसके लिए लखनऊसे मेरे वापस आने तक ठहरना होगा।
जब प्रागजीने मुझे यह सूचित किया कि तुम सब छगनलालको नहीं चाहते तो मैंने लिखा कि मैं उसे नहीं भेजूँगा। ऐसा ही पोलकने भी कहा है। किन्तु छगनलालके साथ बातचीत करने तथा यहाँकी स्थितिकी जाँच-पड़ताल करनेके बाद में इस निर्णयपर पहुँचा हूँ कि मुझे इसके बारेमें कमसे-कम तुम्हें बता देना चाहिए और तुमको ही इस बारेमें कुछ-न-कुछ निर्णय करने देना चाहिए।
तुम सबको प्यार।
हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ४४२५) की फोटो-नकलसे।
सौजन्य: ए० एच० वेस्ट
२२६. भाषण: म्योर कॉलेज, इलाहाबादमें
दिसम्बर २२, १९१६
श्री गांधीने म्योर सेंट्रल कॉलेज, इलाहाबादकी अर्थशास्त्र विभाग-समिति (इकॉनमिक सोसाइटी) के तत्त्वावधानमें आयोजित एक सभा एक सारगर्भित भाषण दिया। सभाके अध्यक्ष माननीय पं० मदनमोहन मालवीय थे। सभामें आये प्रतिष्ठित व्यक्तियोंमें माननीय डा० तेजबहादुर सप्रू, माननीय डा० सुन्दरलाल,[१] श्री एच० एस० एल० पोलक, श्री सी० वाई० चिन्तामणि[२], श्री शिवप्रसाद गुप्त[३], श्री पुरुषोत्तमदास टण्डन[४] तथा डॉ० ई० जी० हिलके[५] नाम उल्लेखनीय हैं। व्याख्यानका विषय था: “क्या आर्थिक