पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/३३६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उपेक्षा करते चले जाते हैं। कुछ लोगोंके मनमें तो अपनी मातृभाषाके प्रति तिरस्कार तक का भाव पैदा हो जाता है। हमारी अंग्रेजी, उच्चारण और व्याकरणकी दृष्टिसे अशुद्ध होती है; फिर भी हम अपना सारा व्यवहार अंग्रेजी में ही करते हैं। हमने अभी अपनी भाषाओंमें विविध विज्ञानोंके परिभाषिक शब्द नहीं गढ़े हैं और अंग्रेजी भाषामें आये हुए शब्दोंको हम भली-भाँति समझते नहीं हैं। कॉलेजका अध्ययन समाप्त होते-होते हमारी बुद्धि कुंठित हो चुकती है और शरीर अशक्त हो जाते हैं। दवाओंकी शीशियाँ हमसे जीवनभरके लिए चिपक जाती हैं। फिर भी लोग यह मानते हैं, और हम भी यही मानते हैं, कि लोगोंकी शोभा हमसे ही है, हम उनके संरक्षक हैं और उनका भविष्य हमारे ही हाथों में है।

यदि गुजरातके युवक कॉलेजोंसे निकलकर गम्भीरतापूर्वक विचार करके लोगोंकी संरक्षकता स्वीकार करेंगे तो मैं उन्हें बहुत साहसी मानूंगा। मैंने यद्यपि यहाँकी शिक्षा-पद्धतिका यह अति निराशाजनक चित्र खींचा है, फिर भी इस निराशामें पुष्ट आशाका बीज भी मौजूद है। इस लेखका आशय यह नहीं है कि अंग्रेजी भाषा किसीको पढ़नी ही नहीं चाहिए। जैसा रूसमें किया गया है और दक्षिण आफ्रिकामें और जापानमें किया जाता है, वैसा हम भी करें। जापानमें थोड़-से गिने-चुने लोगोंने अंग्रेजीका उच्च ज्ञान प्राप्त किया है और फिर यूरोपकी सभ्यतामें जो कुछ ग्रहण करने योग्य है उसे जापानी भाषामें प्रस्तुत करके लोगोंके लिए सुलभ कर दिया है। इस प्रकार वे लोगोंको अंग्रेजी भाषाका ज्ञान प्राप्त करनेके व्यर्थ प्रयत्नसे बचा लेते हैं। अब हममें से बहुत से लोग अंग्रेजीका ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं। वे चाहें तो इसे बढ़ा लें और जिन्हें शरीर-सम्पत्ति अच्छी मिली हो एवं जिनका मानसिक उत्साह भी मन्द न हुआ हो वे अंग्रेजीमें और भाषाओंमें दिये गये लोक-हितकारी विचारोंको गुजराती भाषामें व्यक्त करें। हम अपनी शिक्षा पद्धतिको सतत् प्रयत्नके द्वारा बदल सकते हैं और नये विज्ञानों एवं नये विचारोंका ज्ञान केवल गुजराती भाषाकी मार्फत दे सकते हैं। चिकित्सा विज्ञान, नौकाविज्ञान या विद्युत्-विज्ञानका पूर्ण ज्ञान गुजराती भाषाके माध्यमसे नहीं दिया जा सकता, ऐसी कोई बात नहीं है। अंग्रेजी भाषा जाननेके बाद ही शरीरके विभिन्न अवयवोंका ज्ञान मिल सकता है अथवा तभी जीवित मनुष्यकी अस्थियोंका आपरेशन किया जा सकता है, ऐसा कोई अकाट्य तर्क नहीं है।

भारतमें कमसे-कम ८५ प्रतिशत लोग खेतीका धन्धा करते हैं, १० प्रतिशत लोगोंका धन्धा कारीगरी है। इस १० प्रतिशतमें ज्यादातर लोग कपड़ा बुननेका काम करते हैं एवं शेष पाँच प्रतिशत लोग विभिन्न धन्धे करते हैं। यदि पिछले वर्गके लोग सच्ची लोक-सेवा करना चाहते हैं तो उन्हें शेष ९५ प्रतिशत लोगोंके धन्धोंका कुछ ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। ९५ प्रतिशत लोग अपने पैतृक धन्धे करते हैं। उनका कर्त्तव्य है कि वे अपने-अपने धन्धोंका अच्छा ज्ञान प्राप्त करें। यदि यह खयाल ठीक हो तो खेती और बुनाई इन दो धन्धोंका ज्ञान हमारे स्कूलोंमें बचपनसे ही देनेकी व्यवस्था की जानी चाहिए। अपने धन्धोंका अच्छा ज्ञान प्राप्त करें। यदि यह खयाल ठीक हो तो खेती और बुनाई इन दो धन्धोंका ज्ञान हमारे स्कूलोंमें बचपनसे ही देनेकी व्यवस्था की जानी चाहिए। खेती करने और कपड़ा बुननेका अच्छा ज्ञान दिया जा सके ऐसी स्थिति लानेके लिए हमारे स्कूल, कस्बों और शहरोंके घनी आबादीवाले भागोंमें नहीं, बल्कि ऐसी जगहोंमें होने चाहिए जहाँ बड़े-बड़े खेत (फॉर्म) बनाये जा सकें और शिक्षा खुली हवामें दी जा