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२१६. अहिंसाके विषयमें लाला लाजपतरायको उत्तर[१]

अक्तूबर १९१६

अहिंसाके सम्बन्धमें मैंने जो कुछ कहा था यदि उसका ज्ञान लाला लाजपतरायने[२] पहलेसे प्राप्त कर लिया होता तो उन्हें वह आलोचना[३] करनेकी आवश्यकता न पड़ती, जो कि उन्होंने ‘मॉर्डन रिव्यू’ के गत जुलाई मासकी संख्या में प्रकाशित कराई है। लालाजीका यह पूछना बिलकुल ठीक है कि जो बातें मेरी कही हुई बतलाई जाती हैं वे वास्तवमें मेरी कही हुई है या नहीं। वे कहते हैं कि वे बातें यदि मेरी कही हुई न हों तो मुझे चाहिए कि में उनका खण्डन करूँ। पहली बात तो यह है कि जिनमें मेरी कही हुई बातें अथवा उनपर की हुई टीकाएँ प्रकाशित हुई हैं मैंने अभीतक वे समाचारपत्र ही नहीं देखे हैं। और दूसरी बात यह है कि मेरे व्याख्यानोंके सम्बन्धमें समाचारपत्रोंमें प्रकाशित होनेवाली रिपोर्टोंमें जो-जो भूलें हो जायें उनकी सब भूलोंका में खण्डन भी नहीं कर सकता। बहुतसे गुजराती समाचारपत्रों तथा दूसरे सामयिक पत्रोंमें लालाजीका लेख उद्धृत या अनुवादित किया गया है, अतः मुझे भी अपना पक्ष स्पष्ट रूपसे सामने रख देना चाहिए। लालाजीके प्रति समादर रखते हुए भी मुझे पहले तो उनकी इस बातका खण्डन करना चाहिए कि अहिंसाके सिद्धान्तकी अतिके कारण ही भारतका अधःपतन हुआ है।

इस विश्वासका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है कि हमारे पुरुषोचित गुण अहिंसाके अति-आचारके कारण समाप्त हो गये। पिछले १,५०० वर्षोंमें एक राष्ट्रकी तरह हमने अपनी शारीरिक वीरताके पर्याप्त प्रमाण दिये हैं; किन्तु भीतरी मतभेदोंने हमें एक-दूसरेसे दूर रखा और देशप्रेमकी जगह हमारा स्वार्थ अधिक प्रबल रहा। अर्थात् हम धर्म-भावनाके बजाय अधर्म-भावनासे परिचालित होते रहे।

कापुरुषताका लांछन जैनोंपर किस हदतक सिद्ध किया जा सकता है सो मैं नहीं जानता। मैं उनकी वकालत नहीं करूंगा। मेरा जन्म वैष्णव कुलमें हुआ और बचपनसे मुझे अहिंसाकी शिक्षा दी गई। मैं जिस तरह संसारके सभी महान् धर्म-ग्रंथोंसे धर्मके बारेमें लाभान्वित हुआ उसी तरह जैन धर्म-ग्रन्थोंसे भी हुआ। दार्शनिक श्रीमद्

 
  1. १. मॉडर्न रिन्यू कलकताके अक्तूबर १९१६ के अंक में गांधीजीके पत्रके रूपमें प्रकाशित।
  2. २. (१८६५-१९२८) समाज सुधारक, लेखक और राजनीतिज्ञ; १९०७ में ब्रिटिश सरकार द्वारा देशनिकाला दिया गया; जन सेवक समाज (संवेंट्स ऑफ पीपल्स सोसाइटी) के संस्थापक; १९२० में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष; साइमन कमीशनके बहिष्कारके हेतु किये गये प्रदर्शन के समय पुलिसकी लाठियोंसे घायल, और बादमें उसीके कारण देहावसान।
  3. ३. यह लेख ‘अहिंसा परमो धर्मः――एक सत्य है या सनक?’ शीर्षकसे छपा था। देखिए परिशिष्ट २।