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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए ही निधि भेजी गई है। तुम और थोड़ेसे अन्य लोग संघर्ष चला रहे हो, इस संघर्षको अवश्यमेव कायम रखना होगा। इसलिए आशा है कि इस कार्यके औचित्यके बारेमें तुम मेरे साथ फिरसे जिरह नहीं करोगे। इमाम साहबकी समझमें बात ठीक तरहसे आती जा रही है।

श्री पेटिटने शेष निधिके बारेमें मुझसे कई बार पूछा है। वहाँ अब शेष निधि कितनी है? जिस तारीख तकका हिसाब दिया जा चुका है उससे आगेके खर्चकी रकमें भी जरूर भेज देना। तुमने जो क्षति वहाँ उठाई है उसकी पूत्तिके बाद जो रकम शेष बचेगी उसे ही हम वापस करेंगे।

यह सोचना ही दुःखजनक है कि पोलक दक्षिण आफ्रिका छोड़ रहे हैं। उनका बड़ा आधार रहा है। खादीके काममें हम बहुत व्यस्त हैं। इसलिए अधिक बादमें। सस्नेह,

तुम्हारा,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ४४२३) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य: ए० एच० वेस्ट

२१५. पत्र: श्रीमती ए० एच० वेस्टको

अहमदाबाद
सितम्बर १४, १९१६

प्रिय श्रीमती वेस्ट,

आपने पत्र लिखकर मुझे मेरे वादेकी याद दिलाई, यह ठीक ही किया है। मैं आपको कभी भी नहीं भूला। अन्य कर्तव्योंमें अत्यधिक व्यस्त रहनेके कारण मैं नियमितरूपसे पत्र लिखनेमें असमर्थ रहा हूँ।

मेरा हृदय हमेशा आप सभीके साथ है। आपको मेरी सहानुभूति और सहायता उपलब्ध है। में इस बातमें आपसे पूर्णरूपसे सहमत हूँ कि आपके पास अपने निर्वाहके लिए पर्याप्त होना चाहिए। अधिकार अल्बर्टके अपने हाथ में है; मैं उन्हें लिख रहा हूँ कि वे उसका उपयोग करें।

अल्बर्टको लिखे मेरे पत्रसे[१] आपको और अधिक जानकारी होगी। आशा है उत्तरमें मुझे अवश्यमेव आनन्दसे भरा पत्र मिलेगा। मैं आपसे कहूँगा कि आप इस बातकी परवाह न करें कि श्री रुस्तमजी या अन्य लोग क्या कहते हैं।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू० ४४२४) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य: ए० एच० वेस्ट

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