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२१३. पत्र: जे० बी० पेटिटको

[अहमदाबाद]
अगस्त १९, १९१६

प्रिय श्री पेटिट,

आपका ११ तारीखका पत्र मिला। उत्तर देनेमें कुछ दिन लग गये, क्योंकि आज ही मुझे कुछ मिनटोंके लिए हिसाब जाँचनेका अवकाश मिला। इसके परिणाम-स्वरूप मुझे लगता है कि मदद प्राप्त करनेवाले सत्याग्रहियोंके लिए कमसे-कम १५,००० रुपयोंकी आवश्यकता होगी।

हिसाबकी जाँच करते समय मुझे मालूम हुआ कि मैंने सत्याग्रह कोषसे जो रकम निकाल ली है वह तो उसमें जमा रकमसे ५०० रुपयेसे भी अधिक है। कृपया इस हिसाबमें जमा करानेके लिए १,००० रुपयेका चैक भेजकर मुझे अनुगृहीत करें?

मुझे अवशिष्ट रकम दक्षिण आफ्रिकासे नहीं मिली।[१]जैसा कि मैं आपको पहले ही सूचित[२] कर चुका हूँ अभी वहाँ भुगतान करना शेष है। उन लोगोंको यह बताने में कुछ देर लगेगी कि दक्षिण आफ्रिकामें उन्हें कितनी रकमकी आवश्यकता होगी।

हृदयसे आपका,

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ६३२०) से।

२१४. पत्र : ए० एच० वेस्टको

अहमदाबाद
सितम्बर १४, १९१६

प्रिय वेस्ट,

मुझे तुम्हारा पत्र मिला और उसके साथ ही रुस्तमजीको भेजे गये पत्रकी नकल भी मिली। तुम जानते हो कि मेरा हृदय तुम्हारे साथ है। मैं तुम्हारे पत्रके बारेमें कुछ नहीं कहूँगा, केवल इतना ही कहूँगा कि तुम्हें इतना दुःख हुआ, यह जानकर मुझे दुःख होता है। मैं जानता हूँ कि यह पत्र लिखने के बाद सदाकी भाँति तुम्हारे चेहरेपर प्रसन्नता तथा मनमें दार्शनिकों जैसी शान्ति फिर लौट आई होगी। कुछ भी हो, इतना ही कहना है कि अपनी मासिक आवश्यकतानुसार तुम स्वयं रुपया निकाल सकते हो। कृपया निःसंकोच होकर तुम इसका उपयोग करो। वहाँ तुम्हारे पास निधि है। तुम्हारे लिए तथा तुम जो खर्च करते हो उसके लिए, मैं स्वयं जवाबदेह रहूँगा। तुम इस निधिका उपयोग करते हो, इसमें मुझे कोई बुराई नजर नहीं आती। संघर्षके

  1. १. देखिए अगला शीर्षक।
  2. २. देखिए “पत्र: जे० बी० पेटिटको”, ३०-३-१९१६।