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भाषण: दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहके रहस्यपर

उन्होंने मध्यस्थता क्यों नहीं की? जिस स्थानपर हजारों स्त्री-पुरुषोंका आत्मबल एकत्र हो, जिस स्थानपर असंख्य नर-नारी प्राणोंको हथेलीपर लिये हुए हों, वहाँ कौनसी बात असम्भव है? मध्यस्थता करनेके सिवा लॉर्ड हार्डिज़के लिए कोई उपाय ही न था। और ऐसा करके उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता प्रकट की। इसके बाद जो कुछ हुआ उसे आप जानते ही हैं, अर्थात् दक्षिण आफ्रिकाकी सरकारको मजबूर होकर हमारे साथ समझौता करना पड़ा। इन बातोंसे सिद्ध हुआ कि हम हरएक चीजको बिना किसीको चोट पहुँचाये केवल आत्मवलसे――सत्याग्रहसे――प्राप्त कर सकते हैं। शस्त्रसे युद्ध करनेवालेको शस्त्र तथा दूसरोंकी सहायताका अवलम्बन लेना पड़ता है। सीधे-सादे रास्तेको छोड़कर टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियाँ ढूँढ़नी पड़ती हैं। सत्याग्रही जिस मार्गसे युद्ध करता है वह सरल होता है; उसे किसीकी प्रतीक्षा भी नहीं करनी पड़ती। वह अकेला भी लड़ सकता है, हाँ, उस दशामें फल अवश्य कुछ-देरसे मिलेगा । आफ्रिका-के आन्दोलनमें यदि मुझे बहुतसे साथी न मिलते तो उसका नतीजा इतना ही होता कि आज आप लोग मुझे अपने बीचमें बैठा हुआ न देख सकते। शायद मेरी सारी आयु वहाँ लड़ने ही में खर्च होती। पर इससे क्या होता? जो फल मिला वह कुछ देरसे मिलता। सत्याग्रहके युद्धमें केवल अपनी ही तैयारी दरकार है। हमें पूर्ण संयमशील होना चाहिए। इस तैयारीके लिए यदि गिरि-गुफाओंमें रहनेकी आवश्यकता हो तो वहाँ भी जाकर रहना चाहिए।[१]

इस तैयारीमें जो समय लगेगा उसे समयकी व्यर्थ बर्बादी न समझना चाहिए। ईसाने जगत्का उद्धार करनेके लिए निकलनेसे पूर्व चालीस दिन जंगलमें रहकर अपनी तैयारी की थी और बुद्धने भी वैसी ही तैयारी करनेमें बरसों लगाये थे। यदि उन्होंने इस प्रकार तैयारी न की होती तो वे कदाचित् ईसा और बुद्ध न हुए होते। वैसे ही यदि हम अपने शरीरको सत्यके पालन और परोपकारके निमित्त अनुकूल बनाना चाहते हों तो हमें पहले ब्रह्मचर्य, अहिंसा, सत्य आदि गुणोंको विकसित करके अपनी आत्मिक उन्नति करनी चाहिए। उसके बाद ही यह कहा जा सकता है कि हम सच्ची देशसेवा करनेके योग्य हो गये।

संक्षेपमें सत्याग्रहके संघर्षका हेतु लोगोंमें से कायरता निकालकर पौरुष भरना और सच्चे मनुष्यत्वको विकसित करना था और वहाँकी सरकारसे संघर्ष उसका कार्यक्षेत्र था।

महात्मा गांधी
 
  1. १. इसके बादके दो अनुच्छेद गुजराती विवरणसे अनूदित हैं जो इस हिन्दी विवरणकी अपेक्षा संक्षिप्त-रूपमें मिलता है। मूल भाषण गुजरातीमें ही दिया गया था।