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भाषण: दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहके रहस्यपर

 

अन्याय-मात्रके प्रतिकारके दो प्रकार हैं। एक है अन्याय करनेवालेका सिर तोड़ना और ऐसा करते हुए अपना भी सिर तुड़वाना। संसारमें सभी शक्तिमान् लोग इसीvमार्गका अवलम्बन करते हैं। प्रत्येक स्थानपर युद्ध होता है, लाखों करोड़ों मनुष्य मारे जाते हैं और इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रकी उन्नति तो नहीं होती, पर हाँ, अवनति अवश्य होती है। युद्ध क्षेत्रसे जीतकर लौटे हुए सैनिक विवेक-शून्य हो जाते हैं और उनकी बदौलत समाजमें अनेक उपद्रव होने लगते हैं। इसके उदाहरण के लिए दूर नहीं जाना होगा। बोअर-युद्धमें जिस समय ब्रिटिश सरकार मेफेकिंगमें विजयी हुई उस समय समस्त इंग्लैंड, विशेषकर लन्दन नगर यहाँ तक हर्षोन्मत्त हो गया कि छोटे-बड़े सभी पुरुष रात-दिन नाचते ही रहे। उन्होंने भरपेट शरारतें कीं, भरपेट उछल-कूद की और दूकानोंमें शराबकी एक बूँद भी बाकी न रहने दी। इन कई दिनोंका वर्णन करते हुए ‘टाइम्स’ ने लिखा कि ये दिन लोगोंने जिस रीतिसे बिताये उसका वर्णन शब्दों द्वारा नहीं हो सकता, केवल इतना ही कहा जा सकता है कि ‘द इंग्लिश नेशन वेंट अ-मेफे- किंग।’[१]विजयी राष्ट्र घमंडके कारण बदमिजाज हो जाता है, ऐश-आराममें रहनेका आदी हो जाता है; और कुछ कालतक देशमें शान्ति दिख पड़ती है सही; परन्तु कुछ ही दिनों बाद यह बात निश्चित रूपसे मालूम होने लगती है कि युद्धका अंकुर नष्ट नहीं हुआ, बल्कि सहस्रों गुना अधिक पुष्ट और बलवान् हो गया है। युद्ध द्वारा विजय प्राप्त करके कोई देश न कभी सुखी हुआ है और न होगा। वह देश उन्नत नहीं होता, बल्कि और गिरता है। वास्तवमें उस राष्ट्रकी जीत नहीं, हार होती है। और फिर यदि हमारा कार्य या उद्देश्य भ्रमपूर्ण हुआ तो ऐसे युद्धसे दोनों पक्षोंकी भयंकर हानि होती है।

परन्तु अन्यायके विरुद्ध लड़नेकी जो दूसरी रीति है उसमें अपनी गलतीका नुकसान हमें खुद ही उठाना पड़ता है; दूसरा पक्ष उससे बिलकुल बचा रहता है। यह दूसरी रीति ‘सत्याग्रह’ है। इस उपायका अवलम्बन करनेवालेको दूसरेका सिर नहीं तोड़ना पड़ता, केवल अपना ही सिर तुड़वाना पड़ता है। स्वयं ही सब यातनाएँ सहते हुए मरनेके लिए तैयार रहना पड़ता है। दक्षिण आफ्रिकाकी सरकारके अत्याचारी कानूनोंका मुकाबला करनेमें हमने इसी उपायका अवलम्बन किया था। हमने उक्त सरकारको कहला भेजा कि “हम तुम्हारे अत्याचारी नियमोंके सामने कभी सिर न झुकायेंगे! जिस तरह दो हाथोंके बिना ताली नहीं बजती, दो आदमियोंके बिना झगड़ा नहीं होता, उसी तरह दो पक्षोंके बिना राज्यका अस्तित्व भी नहीं रहता। जबतक हम अपने आपको तुम्हारी प्रजा मानते हैं तभीतक तुम हमारे राजा――हमारी सरकार――हो। हम प्रजा नहीं तो तुम राजा भी नहीं। जबतक तुम्हारी चेष्टा हमें न्याय और प्रेमसे बाँधनेकी रहेगी तभीतक हम ऐसा होने देंगे। पर यदि तुम छलसे हमारा घात करना चाहो तो यह असम्भव है। दूसरे मामलों में तुम जो-चाहे-सो करो, पर हमारे लिए बनाये गये कानूनोंमें तुमको हमारा मत लेना ही पड़ेगा, हमारी सलाहके बिना तुम हमें अनुचित रीतिसे दबा रखनेके लिए जो कानून बनाओगे वे तुम्हारी

  1. १. अंग्रेज जातिको मेफेकिंग-उन्माद हो गया।