पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/३२२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं, गरीबोंको भी आपको उतना ही समय देना और उनका भी उतना ही ध्यान रखना चाहिए।

गरीबोंपर ही रेलोंका अस्तित्व अवलम्बित है और आपकी तनखाहोंका बहुत-कुछ दारोमदार उनसे प्राप्त पैसेपर ही है।

कितने ही टिकट बाबू गरीबोंको गालियाँ देते हैं, उनको ‘तू’ कहकर सम्बोधित करते हैं, और इतनेपर भी जहाँतक उनका बस चलता है उन्हें देरसे टिकट देते हैं। इसमें कोई बड़प्पन नहीं है। माँगनेवालोंको समयपर टिकट देनेसे उनका बहुत-सा समय बच जाता है और किसीका कुछ नुकसान भी नहीं होता।

यदि आप सिपाही हों तो आपको घूस खानेसे दूर रहना चाहिए, गरीबोंको धक्के न देनेका निश्चय करना चाहिए और उनपर कृपादृष्टि रखनी चाहिए। इतना समझ लेना चाहिए कि आप जनताके नौकर हैं, उसके स्वामी नहीं उनको कठिनाइयोंसे बचाना आपका कर्त्तव्य है। आप यदि स्वयं उन्हें कठिनाइयोंमें डालने लगे तो यह अन्याय ही है।

मुझे शिक्षित यात्रियोंसे यह कहना है:

आप लोग पढ़े-लिखे हैं और कुछ हद तक यह चाहते हैं कि दूसरे लोग आपको देशभक्त समझें। यदि आप अपने देशप्रेमका उपयोग उन अपढ़ और गरीब यात्रियोंका भला करनेमें करें जिनसे आपका साथ हो जाया करता है तो आप अनायास देश-सेवा करेंगे।

उदाहरणार्थ किसी यात्रीपर कोई अत्याचार किया जा रहा हो तो आप अनेक प्रकारसे उसकी सहायता कर सकते हैं। आप सामान्यतः तीसरे दर्जेमें यात्रा न करते हों तो भी अनुभव प्राप्त करनेके लिए तीसरे दर्जेमें यात्रा करें। इसीसे तीसरे दर्जेके यात्रियोंका बड़ा उपकार हो सकता है।

अपनी सच्ची सामाजिक स्थिति प्रकट न करते हुए टिकट लेने जाकर उनके सम्पर्कमें आयेंगे तो उन्हें टिकट लेनेमें जो कष्ट सहन करने पड़ते हैं उनका इलाज आप सहज ही मालूम कर सकेंगे। उस दशामें आपको जो सुविधाएँ मिलेंगी वे कुछ ही कालमें सर्व-साधारणको भी मिल जायेंगी।

कभी-कभी तो शिक्षित लोग स्वयं ही तीसरे दर्जेके यात्रियोंपर अत्याचारका कारण बन जाते हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें खास तौरपर जल्दी टिकट मिल जायें। वे अपने लिए गाड़ीमें खास सुविधा प्राप्त कर लेते हैं। जितना चाहिए उससे अधिक स्थान घेर लेते हैं और इससे गरीबोंको कष्ट मिलता है। शिक्षितोंको चाहिए कि वे अत्याचारके ऐसे साधन बनना एकदम छोड़ दें।

स्टेशनों अथवा गाड़ियोंमें जो दोष दिख पड़ें उनके विषयमें अधिकारियोंसे लिखा-पढ़ी करना आप लोगोंका कर्तव्य है।

मैं सर्वसामान्य यात्रियोंको यह सुझाव देता हूँ:

आप शिक्षित-अशिक्षित धनी-निर्धन, किसी भी वर्गके क्यों न हों; पर यदि आप निम्न सुझावोंको ध्यानमें रखें तो यात्रियोंकी ७५ प्रतिशत कठिनाइयाँ क्षण-मात्रमें दूर हो जायें।