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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

सभामें उपस्थिति बहुत थी और श्रोताओंमें हिन्दू, दक्षिणी और गुजराती तथा स्त्रियों-की संख्या भी खाली थी। इनमें प्रमुख माननीय श्री चिमनलाल सीतलवाडकी पत्नी थीं और उनके साथ उनको पुत्रियाँ और पुत्र-वधुएँ भी आई थीं।

सभामें सर्वश्री गांधी, हॉनिमैन और जमनादास डी० धरमसीका स्वागत तालियोंकी गड़गड़ाहटसे किया गया। ऊपरकी गैलरीमें बैठे एक श्रोताने अलगसे तालियाँ बजाकर श्री गांधी के स्वागतका आग्रह किया।

श्री मो० क० गांधीने अपना भाषण गुजरातीमें देते हुए कहा कि अपनी मातृभूमिके प्रति निष्ठा प्रकट करनेका सच्चा तरीका देशकी भाषामें बोलना ही है।

श्री गांधीने कहा:

अध्यक्ष महोदय, प्यारी बहिनो और भाइयो,

मैं देखता हूँ कि इस सभामें कई लोग गुजरातीमें मेरे भाषण शुरू करनेपर हँस पड़े हैं। (हँसी)। आप जानते ही हैं कि हम स्वराज्य लेना चाहते हैं, और मैं सोचता हूँ कि स्वराज्य मिलनेपर हमें अपना सब काम-काज गुजराती भाषामें ही करना चाहिए। (हँसी)। आशा है, इस सम्बन्धमें आप मुझसे सहमत होंगे। जिन करोड़ों लोगोंके हितार्थ हमें स्वराज्य चलाना होगा, उनसे अंग्रेजी भाषामें व्यवहार करना असम्भव है, क्योंकि वे अंग्रेजी बिलकुल नहीं जानते। बेशक यह बात ठीक है कि इस सभामें हमें जिन लोगोंके सामने बोलना है उनमें अधिकांश लोग अंग्रेजी भाषा जानते हैं। उनसे अपनी देशी भाषामें भाषण देनेका साहस करनेके लिए में क्षमा- याचना करता हूँ। (हँसी)। यह कहा जा सकता है कि इस सभा-भवनमें जो लोग अंग्रेजी जानते हैं, उनके अतिरिक्त मराठी जाननेवाले लोग भी कम नहीं हैं। मैं जानता हूँ कि यहाँ मराठी-भाषी लोग हैं; किन्तु मैं उनसे सादर कहना चाहता हूँ कि अव वे गुजराती सीख लें जिससे उन्हें जब मेरा गुजराती भाषण सुननेका अवसर आये तब वे उसे थोड़ा-बहुत समझ सकें। (हँसी)

मुझे जो प्रस्ताव सौंपा गया है वह इस तरह है:

महामहिम सम्राट्के राजभक्त और कानूनका पालन करनेवाले भारतीय प्रजाजनोंकी यह सभा विश्वास करती है कि एक स्वस्थ और प्रगतिशील राज्यके लिए स्वतन्त्र सार्वजनिक पत्रोंका होना पहली आवश्यक शर्त है और यह बात सभ्य लोगोंके उचित राजनीतिक और नैतिक विकासके लिए जरूरी है; एवं सार्वजनिक जीवनके समस्त विभागों में स्वतन्त्रताका प्रवेश और उसका कायम रखा जाना लोगोंके उत्थान और सन्तोष तथा सरकार और लोगोंके पारस्परिक विश्वासकी अचूक गारंटी है। इसलिए यह सभा सरकारसे प्रार्थना करती है कि इस देशके समाचारपत्रोंको विचार प्रकट करनेकी पूरी स्वतन्त्रता दी जाये; उनपर केवल सामान्य कानून और दण्डका अंकुश रहे; और दण्ड उन्हें उचित रूपसे मुकदमा चलाने और अपराध सिद्ध होनेके बाद ही दिया जाये। (तालियाँ)

(श्री गांधीने प्रस्तावका स्पष्टीकरण गुजरातीमें किया)।