पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/३१४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अवश्य सुधारूँगा। किन्तु इसके साथ ही मैं यह प्रतिज्ञा भी करता हूँ कि अन्त्यजोंके सम्बन्ध में आपकी जो अनुचित मान्यता है उसको भी मैं आपसे छुड़वाकर ही दम लूँगा।

[गुजरातीसे]
गुजराती, ११-६-१९१६

२०४. भाषण: जाति-प्रथाके सम्बन्ध में[१]

जून ५, १९१६

मैं भारतमें अपना कर्त्तव्य सीखनेके लिए आया हूँ। उस कर्त्तव्यको सीखनेमें मुझे कितना समय लगेगा, यह मैं अभी नहीं कह सकता। अभी मैं आपके सम्मुख बोलनेके लिए खड़ा हुआ हूँ, इसमें भी मेरा हेतु कुछ सीखना ही है। मैं इस विषयकी तैयारी नहीं कर सका हूँ; फिर भी मुझे अपने विचार प्रकट करनेका यह अवसर मिला है, इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ। अखबारवाले मेरे भाषण छापते हैं; किन्तु कई बार उसे समझनेमें भूल होनेसे मेरा आशय उलटे रूपमें सामने आ जाता है। और मुझ जैसे स्वमताग्रहीको यह बात ठीक नहीं लगती। इसलिए पत्रकारोंसे मेरा निवेदन है कि वे मेरे भाषणोंका वृत्तान्त छापनेसे पूर्व मुझे दिखा लें। यदि वे ऐसा करेंगे तो बहुत ठीक होगा। इस सम्मेलनकी कलकी कार्रवाईसे मैं बहुत प्रसन्न हुआ हूँ, क्योंकि उसमें भाषण संक्षिप्त और उपयोगी हुए हैं। मैं तो यह मानता हूँ कि हमारे लिए अब सम्मेलन करनेका समय निकल गया और अब कुछ काम करके दिखानेका और मौन धारण करनेका समय आ गया है, क्योंकि कार्य कर दिखानेके बाद जो-कुछ कहा जायेगा उसका असर लोगोंपर दूसरा ही होगा। बुद्ध, ईसा, मुहम्मद आदि अवतारी पुरुषों और मार्टिन लूथरने भी ऐसा ही किया था। जाति-प्रथाके सम्बन्धमें मैंने बहुत विचार किया है[२] और मुझे ऐसा जान पड़ा है कि हिन्दू समाजका काम जातियोंके बिना नहीं चल सकेगा। वह तो जाति-बन्धनसे ही टिका हुआ है। समस्त संसारकी रचना ही जाति-व्यवस्था अथवा वर्ण-व्यवस्थापर हुई है। हमारी वर्ण-व्यवस्था संयमके उद्देश्यसे अर्थात् त्याग-वृत्तिसे स्थापित की गई है। पश्चिमकी वर्ण-व्यवस्था और हमारी वर्ण-व्यवस्थामें भेद है। फिर भी सर्वत्र वर्ण-व्यवस्था तो है ही। जबतक मनुष्यमें आसुरी वृत्ति और देवी-वृत्ति वर्तमान है तबतक जातिभेद रहेगा। इस रचनाका उन्मूलन करके एक जाति बनानेका प्रयत्न व्यर्थ हे। जातियाँ भी जन्मती और मरती हैं। श्री लायलने अपनी पुस्तकमें लिखा है कि हिन्दुओंमें जातियाँ जनमी और मरी हैं। इतना ही नहीं, बल्कि बाहरसे भी अन्य लोग हिन्दुओंमें आये हैं। फिर भी हिन्दुओंने उन्हें ईसाइयोंकी तरह हिन्दू बनाया हो, ऐसा देखनेमें नहीं आता। अन्य धर्मों और अन्य सम्प्रदायों के लोग दीर्घकालमें हिन्दू बने हैं। किसी जातिका ऊँचा या नीचा होना उसके कार्यपर

  1. १. सम्मेलनके दूसरे दिन, देखिए पिछला शीर्षक।
  2. २. देखिए “हिन्दुओंमें जाति प्रथा”, पृष्ठ ३०३-५१।