पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/३१२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और जितना हो सके शुद्ध परोपकार करें। इससे हृदयमें कुछ शान्ति रहेगी। भरतके जीवनपर बारम्बार विचार करें।

यह निश्चित समझें कि एक भी घड़ी ऐसी नहीं जब मुझे आपका खयाल न आता हो।

मोहनदासके वन्देमातरम्

भाई श्यामजी सहाय अपनी पत्नी सहित आ सकते हैं। दूसरे विद्यार्थियों के आनेसे भी कोई हानि नहीं। इन्दौर तो जब जा सकूँ तब ठीक है।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (जी० एन० ३६०९) की फोटो-नकलसे।

२०२. पत्र: वीरचन्द शाहको

अहमदाबाद
वैशाख बदी ६ [मई २५, १९१६]

प्रिय श्री वीरचन्द पानाचन्द शाह

आपने प्रश्न[१] ठीक ही पूछे हैं।

मेरे हृदयमें क्षोभ [कभी-कभी] होता होगा।

मेरे मनमें कभी-कभी यह क्षुद्र विचार आता है कि यदि ऐसा न होता, ऐसा होता तो ठीक होता। पश्चात्ताप बहुत बार होता है।

बुद्धिमें पक्षपात भी आ जाता होगा, किन्तु ऐसा इतना कम होता होगा कि उसका स्मरण मुझे नहीं आता।

मैं जैसा सोचता हूँ उसके अनुसार समस्त कार्य नहीं कर पाता।

मैं अपनी अपूर्णताएँ प्रतिक्षण देखता हूँ और उन्हें दूर करनेका प्रयत्न प्रतिक्षण करता हूँ।

विशेष पूछना हो तो पूछें।

मोहनदास गांधोके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७०२) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य: प्रमोद वीरचन्द शाह

१.श्री शाहने अपने २० मई, १९१६ के पत्र में ये प्रश्न पूछे थे:

  1. :(१) क्या आपके हृदय में कभी क्षोभ होता है?
    (२) क्या आपको कभी ऐसा खयाल होता है कि यदि ऐसा न होता, ऐसा होता तो ठीक होता? क्या आपको कभी पश्चाताप होता है?
    (३) क्या आपमें कभी पक्षपात-बुद्धि आती है?
    (४) आप जैसा सोचते हैं, क्या उसके अनुसार कार्य कर सकते हैं (दूसरोंपर निर्भर कार्य नहीं, किन्तु अपने मनमें निश्चय किये हुए कार्य और आपसे सम्बन्धित कार्य)?
    (५) क्या आपको अपने भीतर किसी खास तरहकी अपूर्णता दिखाई देती है? यदि दिखाई देती है तो क्या आप उसे दूर करनेका प्रयत्न करते हैं?