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२००. पत्र: जैन बोडिंग हाउस, भावनगरके छात्रोंको[१]

अहमदाबाद
वैशाख सुदी ११ [मई १३, १९१६][२]

मैं चायकी जगह काममें लानेके लिए गेहूँका चूर्ण भेजता हूँ। यह कैसे बनाया जाता है, इसकी विधि मेरी स्वास्थ्य सम्बन्धी पुस्तकमें[३] दी गई है। पुस्तक अभी-अभी सस्तुं-साहित्य-वर्धक कार्यालयने[४] प्रकाशित की है। मेरा विश्वास है कि आप उसे पढ़ लेंगे, इसलिए विधि यहाँ नहीं लिखता।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें पोस्ट कार्डपर लिखित मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७०३) से।

सौजन्य: प्रमोद वीरचन्द शाह

२०१. पत्र: कोटवालको

अहमदाबाद
वैशाख बदी ४ [मई २१, १९१६][५]

भाईश्री कोटवाल,

आपका एक भी पत्र अनुत्तरित नहीं रहा है। मैंने यह नियम नहीं रखा कि आश्रमकी घटनाओंके सम्बन्धमें स्वतः लिखूं, इसलिए फकीरीके विषयमें लिखनेका खयाल नहीं आया। फकीरीकी मृत्यु गौरवशाली थी।

अन्ना फिलहाल तो हाथसे चला ही गया है। उसने सूचित किया है कि वह एक-दो वर्ष तो नहीं आ सकता पीछे जो भी हो। आश्रमके नियमोंका पालन करनेमें कठिनाई होनेसे मगनभाई जा रहे हैं। मामा[६] यहीं हैं।

आपको नौकरी मिल गई। इससे जितना प्रसन्न हूँ उतना ही अप्रसन्न भी। आप बड़े लोभमें पड़ गये हैं। मैं चाहता हूँ कि आप इससे छुटकारा पा जायें। इसका एक ही रास्ता है। आप नौकरीमें केवल परमार्थका ध्यान रखें, एक भी सुख न भोगें

  1. १. वीरचन्द शाहने लिखकर पूछा था कि चायकी जगह क्या लिया जा सकता है। इसीके उत्तर में।
  2. २. डाकखानेकी मुहरसे।
  3. ३. आरोग्यके सम्बन्धमे सामान्य ज्ञान, देखिए, खण्ड ११।
  4. ४. अहमदाबादमे भिक्षु अखण्डानन्द द्वारा स्थापित प्रकाशन संस्था।
  5. ५. अन्ना और मगनभाई पटेल, जिनका पत्रमें उल्लेख है, इस समय आश्रमसे चले गये थे।
  6. ६. मामासाहब फडके; गंगानाथ विद्यालय, बड़ौदाके एक अध्यापक, जो अन्ना (हरिहर शर्मा) के साथ ही गांधीजीके पास आये थे।