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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं श्री तिलक द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावका[१] हार्दिक समर्थन करता हूँ। में विश्वास करता हूँ कि मुझसे स्वीकृत रिपोर्टके सम्बन्धमें रखे गये प्रस्तावका शब्दशः समर्थन करनेकी आशा नहीं की जायेगी। इतना ही काफी होना चाहिए कि में प्रस्तावको मुख्य भावनासे सहमत हूँ। यदि इस प्रस्तावको भाषा देना मेरे हाथमें होता तो मैं उसके कुछ वाक्यांश सम्भवतः निकाल देता। श्री तिलकके भाषण में वे सभी बातें हैं जो वांछित हैं और यदि वे प्रस्तावकी भावना और अपने कथनके अनुसार काम करेंगे, जिसकी मुझे पूरी आशा है, और समस्त नेशनलिस्ट दल भी उसी प्रकार काम करेगा तो मुझे निश्चय है कि भावी ऐक्य मातृभूमिके लिए एक वरदान सिद्ध होगा। इसी कारण मैं श्री बैप्टिस्टासे, जिनकी भावना बहुत कुछ वकीलों-जैसी जान पड़ती है, असहमत हूँ। यदि आप इस प्रश्नपर वकीलोंकी भावनासे विचार करेंगे तो आप सदा दोष ही देखते रहेंगे। आवश्यकता इस बातकी है कि राष्ट्रीय प्रश्नपर सामान्य जनोंकी दृष्टिसे विचार किया जाये। आप तब उन लोगोंके, जो अभी कुछ पहले तक आपके विरोधी थे, भूलों और दोषोंकी उपेक्षा करेंगे; बल्कि सदा यही देखेंगे कि दोनों किन बातोंपर सहमत हैं और किन बातों में उनके विचार मिलते-जुलते हैं। दोनों दल यदि पूर्ण सचाई और निःस्वार्थ भावसे सदा देश और उसके कार्यका ही खयाल करते हुए, दलका या व्यक्तिगत लाभका विवार छोड़कर, कांग्रेसमें वापस आ जायें तो ईश्वर सदा आपके साथ होगा और ईश्वर साथ होगा तो समस्त संसारका विरोध होनेपर भी राष्ट्र प्रगति कर सकेगा। ...

[अंग्रेजीसे]
बंगाली, ३-५-१९१६
 
  1. १. तिलकका प्रस्ताव, जो सर्वसम्मतिसे स्वीकृत हो गया, इस प्रकार था: यह सम्मेलन सर्वश्री बेलवी, बैप्टिस्टा और तिलककी रिपोटौंको स्वीकार करता है और चूँकि वर्तमान परिस्थितियों में हमारी मातृभूमिके हितकी दृष्टिसे एकता वांछनीय है इसलिए यह सम्मेलन कांग्रेसके संविधानको पिछले अधिवेशनमें किये गये संशोधनके साथ, यद्यपि संशोधन बहुत ही असन्तोषजनक है, स्वीकार करता है और इस सम्बन्धमें कांग्रेसकी ओरसे आगे काम करनेके लिए निम्न सज्जनोंकी एक समिति नियुक्त करता है: एस० खापर्डे, जे० बैप्टिस्टा, डी० वी० बेलवी, बा० गं० तिलक और नृ० चिं० केलकर (मन्त्री)। देखिए बम्बई सरकारको सोर्स मैटीरियल फॉर ए हिस्ट्री ऑफ दी फ्रीडम मूवमेंट इन इंडिया, खण्ड २, पृष्ठ २४०-२।