कि जो व्यक्ति यज्ञ किये बिना खाता है, वह चोर[१] है; और यज्ञका सच्चा अर्थ तो खेतमें किया हुआ शारीरिक श्रम है। हम अपना भोजन पचानेके लिए खेतमें नित्य चार घंटे कुदाली लेकर खोदें और अन्य नियमोंका पालन करें तो अकाल मृत्युकी संख्या कम हो जायेगी।
हम जब बीमार होने में लज्जा अनुभव करेंगे तब अवश्य ही स्वास्थ्य लाभ करेंगे और मेरा विनीत अभिप्राय यह है कि जो पुरुष या स्त्री सार्वजनिक काम करते हुए अपने स्वास्थ्य ठीक रखनेके नियमोंकी खोज करेंगे वे देशकी बहुत बड़ी सेवा करेंगे।
आपका
मोहनदास करमचन्द गांधी
प्रजाबन्धु, २३-४-१९१६
१९७. पत्र: गंगाधरराव देशपाण्डेको[२]
[अप्रैल २९, १९१६ से पूर्व][३]
बेलगाँव जाने और सम्मेलनमें भाग लेनेसे मुझे मौतके सिवा और कोई रोक नहीं सकता।[४]
माझी जीवन कथा
१९८. भाषण: बेलगाँवमें
अप्रैल ३०, १९१६
खोटीबीस बाड़ा, रविवार पेठ, बेलगाँवमें रात्रिके समय एक सभा हुई जिसमें लगभग एक हजार आदमी श्री गांधीका भाषण सुनने के लिए आये। विषय था ‘दलित वर्ग’। अधिकांश श्रोतागण लिंगायत और अछूत थे। आर० एस० शिवमूर्ति स्वामी कनाबारगी अध्यक्ष थे।...
श्री गांधी खड़े हुए और उन्होंने कहा चूँकि मेरी तबीयत अच्छी नहीं है, मैं केवल एक मिनटमें अपनी बात कहूँगा। उन्होंने लोगोंकी प्रान्तीय सम्मेलनको
- ↑ १. भगवद्गीता, ३-१२।
- ↑ २. गंगाधरराव बालकृष्ण देशपाण्डे (१८७०- ); कर्नाटक के प्रसिद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता जो ‘कर्नाटक केसरी’ के नामसे प्रसिद्ध हैं।
- ↑ ३. गांधीजी बम्बई प्रान्तीय सम्मेलनमें भाग लेनेके लिए इसी तारीखको बेलगाँव पहुँचे थे।
- ↑ ४. गांधीजीने सम्मेलनमें उपस्थित होना स्वीकार कर लिया था; किन्तु बादमें अफवाह उड़ी कि वे कदाचित् वहाँ न जायें। गांधीजी ने यही प्रश्न किये जानेपर उक्त जवाब दिया था।