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१९५. भाषण: शोक-सभामें[१]

[अहमदाबाद]
अप्रैल १६, १९१६

श्री पाटिल अहमदाबाद के रत्न थे। यदि अहमदाबादने उन्हें परखा होता तो आज यह सभा-भवन खचाखच भरा होता। जब मुझे बम्बईसे अहमदाबाद आनेका आमन्त्रण मिला तब एक मित्रने मुझसे कहा कि चूंकि आमन्त्रण-पत्रपर श्री पाटिलके भी हस्ताक्षर हैं, इसलिए अहमदाबाद जानेमें कोई हर्ज नहीं। कहनेका मतलब यह है कि वे अपनी बातके पक्के और विनम्र थे। दूसरी एक बात यह कि वे इतनी अल्पायुमें गुजर गये। इस सम्बन्धमें मेरा सुझाव यह है कि राजनैतिक नेताओंकी मृत्यु इतनी अल्प आयुमें क्यों हो जाती है, इसकी जाँच की[२] जानी चाहिए। मेरे खयालसे इसका कारण यही है कि वे अपने स्वास्थ्यकी चिन्ता नहीं करते।

[गुजरातीसे]
प्रजाबन्धु, २३-४-१९१६
 

१९६. पत्र: ‘प्रजाबन्धु’ को[३]

सत्याग्रह आश्रम
अहमदाबाद
चैत्र वदी २, गुरुवार, अप्रैल २०, १९१६

सम्पादक
‘प्रजाबंधु’
महोदय,

मैं प्रस्तुत पत्र यह मानकर लिख रहा हूँ कि भाई गोविन्दराव अप्पाजी पाटिलकी कम उम्रमें मृत्यु हो जानेसे मेरे मनमें जो बहुतसे विचार उत्पन्न हुए और हो रहे हैं, उनमें से कुछको आप पाठकवृन्दके सम्मुख रखनेकी अनुमति देंगे।

मैंने मृत व्यक्तिकी उम्रके आगेका विशेषण जान-बूझकर लगाया है। ५० वर्षसे नीची उम्र कम उम्र ही मानी जानी चाहिए; भाई गोविन्दराव ५० वर्षसे कम उम्रमें ही चले गये। यह बड़े दुःखकी बात है कि उत्तम नेताओंकी अकाल मृत्यु हो जानेसे

  1. १. स्थानीय वकील और समाज-सेवी श्री गोविन्दराव अप्पाजी पाटिलके निधनपर अहमदाबादमें आयोजित।
  2. २. देखिए अगला शीर्षक।
  3. ३. मूल शीर्षक “हम अल्पायुमें क्यों मर जाते हैं?” था।