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भाषण: आर्य-समाज भवन, हरद्वारमें

नहीं होगा और धन्धेकी समस्या उसके लिए कोई समस्या न होगी। इसके सिवाय स्वास्थ्य और सफाईके नियम तथा शिशु-पालन भी गुरुकुलके विद्यार्थियोंकी शिक्षाका एक आवश्यक अंग होना चाहिए। यहाँ मेलेमें सफाईकी जो व्यवस्था होती है, उसमें अभी बहुत कसर है। यह बात मक्खियोंकी भरमारसे स्पष्ट हो जाती है। मक्खियाँ मानो अदम्य स्वास्थ्य निरीक्षिकाएँ हैं। वे हमें लगातार हिदायतें देती रहती हैं कि सफाईके मामले में अभीतक सब-कुछ सम्पूर्ण नहीं किया गया है। उनकी भरमारसे यह स्पष्ट हो जाता है कि जूठन और मलपर ठीक ढंगसे मिट्टी नहीं डाली गई है। मुझे यह सोचकर बड़ा दुःख हुआ कि हम इस स्वर्ण अवसरको यों ही खो दिया करते हैं। इस अवसरपर आनेवाले यात्रियोंको सफाईके पदार्थ-पाठ पढ़ाये जा सकते हैं। किन्तु यह काम शुरू तो गुरुकुलके विद्यार्थियोंसे ही होना चाहिए। यदि ऐसा हो, तो व्यवस्थापक लोगोंके पास वार्षिक उत्सवके समय ३०० सीखे-सिखाये स्वास्थ्य शिक्षक मौजूद रहें। अन्तमें एक महत्त्वपूर्ण बात और। बच्चोंके माता-पिता और संस्थाकी समिति अपने बच्चोंको यूरोपीय वेश-भूषा और आधुनिक विलासकी सामग्री मुहैया करके उन्हें नकल करना न सिखाये। अपने परवर्ती जीवनमें ये चीजें उनके मार्गमें बाधा डालनेवाली बनेंगी और ब्रह्मचर्यके विरोधमें जायेंगी। यह दुष्ट प्रवृत्ति सभी लोगोंमें फैल रही है और इन्हें तो इससे लड़ना ही चाहिए। हम उनकी वासनाओंको बढ़ाकर इन प्रवृत्तियोंके विरुद्ध संघर्षको और कठिन न बनायें।

[अंग्रेजीसे]
स्पीचेज ऐंड राइटिंग्ज ऑफ महात्मा गांधी

१९२. भाषण: आर्य-समाज भवन, हरद्वार में

मार्च २३, १९१६

आर्यसमाज भवनमें शामको दयानन्द आंग्ल वैदिक स्कूलके विद्यार्थी ले जाये गये और श्री गांधीने अस्वस्थ होनेके कारण छोटा-सा भाषण दिया।

श्रोताओंसे श्री गांधीने अपने विश्वासके मुताबिक आचरण करनेका आग्रह किया और कहा कि मार्गदर्शक या शासकोंका अनुसरण करनेमें हमें उनके बाहरी व्यवहार-की नकल नहीं करनी चाहिए। उनका रहन-सहन, उनकी पोशाक अथवा रीति-रिवाज, जैसे माँस खाना आदि हमारे आदर्श नहीं बन सकते। उन्होंने विद्यार्थियोंसे कहा कि उन्हें अपनी आत्माके प्रति सच्चा बनना चाहिए और वे तभी देशके प्रति सच्चे बन सकेंगे।

[अंग्रेजीसे]
बॉब्वे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स, १९१६, पृष्ठ २४३-४