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भाषण: गुरुकुलके वार्षिक उत्सवमें

कामोंके प्रति कैसी ही क्यों न हो, हम उनके शरीरको अपने ही शरीरकी तरह रक्षणीय मानेंगे, तो बहुत जल्दी पारस्परिक विश्वासका वातावरण निर्मित हो जायेगा और दोनों एक-दूसरेसे बिलकुल खुलकर बातचीत करेंगे और इस तरह जो समस्याएँ हमें आज विचलित किये हैं उनमें से अनेक सम्मानास्पद और न्यायोचित ढंगसे सुलझ जायेंगी। याद रखना चाहिए कि अहिंसाके आचरणमें दूसरेसे भी वैसे ही आचरणकी अपेक्षा रखना आवश्यक नहीं है; सच पूछो तो अपनी आखिरी मंजिलोंमें अहिंसाकी प्रतिक्रिया अहिंसाके सिवा और कुछ होना असम्भव है। हममें से बहुतोंका और मेरा भी यह विश्वास है कि हमें अपनी सभ्यताके जरिए संसारको सन्देश देना है। ब्रिटिश सरकारके प्रति मेरी राजनिष्ठाका कारण बिलकुल स्वार्थमय है। मैं ब्रिटिश कौमकी मारफत अहिंसाका जबरदस्त सन्देश सारी दुनियामें फैलाना चाहता हूँ, किन्तु यह तो तभी सम्भव है जब हम अपने कथित विजेताओंपर विजय प्राप्त कर लें और आर्य-समाजी भाइयो, मेरी समझमें इस महान् कार्यके लिए आप लोग खास तौरपर उपयुक्त माने गये हैं। आपका दावा है कि आपने शास्त्रोंका बारीकीसे अध्ययन किया है। आप आँखें बन्द करके किसी भी विचारको स्वीकार नहीं करते और अपने विचारके अनुसार आचरण करनेमें भी आप बिलकुल नहीं डरते। मेरी समझमें अहिंसाके सिद्धान्तको कम कूतने या उसकी सीमा निर्धारित करनेकी कोई जरूरत नहीं है। तब फिर आइए, हम इसके तात्कालिक परिणामोंकी चिन्ता न करते हुए इसे अपने आचरणमें उतारें। इसके तात्का-लिक परिणाम आपकी निष्ठाकी शक्तिको कसौटीपर कसेंगे। यदि आप इसका आचरण करें, तो आप भारतको गुलामीसे छुड़ा लेंगे, इतना ही नहीं, आप मानव-जातिकी बड़ीसे बड़ी सेवा भी करेंगे। और आपका यह कहना भी ठीक होगा कि ऐसी सेवाके लिए ही स्वामी दयानन्दने जन्म लिया था। स्वदेशी एक नितान्त सक्रिय शक्ति है और इसका उपयोग सतत् जाग्रत रहकर आत्म-निरीक्षण करते हुए निरन्तर करते रहना चाहिए। आलसी व्यक्ति इसका आचरण नहीं कर सकता। यह तो उनके आचरणके योग्य है जो सत्यके लिए अपना जीवन खुशीसे न्यौछावर कर सकते हैं। स्वदेशीके और भी अनेक पहलुओंपर विस्तारसे विचार किया जा सकता है; किन्तु अपनी समझमें मैंने जो कुछ कहा है, उससे आप मेरा मतलब समझनेमें समर्थ हो सकेंगे। मैं यही आशा करता हूँ कि आप लोग जो भारतके एक विशिष्ट सुधारवादी दलके प्रतिनिधि हैं, मेरी बातको अच्छी तरह कसौटीपर कसे बिना त्याज्य नहीं मान लेंगे; और अगर मेरी बात आपको जॅच गई है तो आपके द्वारा किये हुए कामोंको देखते हुए, मैं आशा करता हूँ, कि आप उन शाश्वत तत्त्वोंको अपने जीवनमें स्थान देंगे जिनकी मैंने आपसे अभी बात की है; और तदनुसार आप सारे भारतवर्षमें जुट जायेंगे।

आर्य-समाजका कार्य

मैं उपर्युक्त विवरणके अन्तमें वह बात भी कहना चाहता हूँ जो मैंने वहाँके श्रोताओंसे नहीं कही। मैं अबतक दो बार गुरुकुल जा चुका हूँ। आर्य-समाजके अपने भाइयोंसे कुछ प्रमुख मतभेद होते हुए भी मन-ही-मन में उनकी बड़ी इज्जत करता हूँ; और आर्य-समाजकी गतिविधिका सर्वश्रेष्ठ परिणाम कदाचित् गुरुकुलकी स्थापना और