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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

स्वदेशीका अर्थ

निर्भयताकी भावनाका भली प्रकार विकास कर चुकनेके बाद हम देखेंगे कि सच्ची स्वदेशीकी भावनाके बिना मुक्ति सम्भव नहीं है। ‘सच्ची स्वदेशी भावना’ उस स्वदेशी भावनासे भिन्न है, जिसे हम अपनी सुविधाके अनुसार पालना चाहते हों। मेरे लेखे स्वदेशीका बड़ा गहरा अर्थ है। मैं तो उसे अपने धार्मिक, राजनीतिकvऔर आर्थिक जीवनपर लागू करना चाहता हूँ। वह अवसर-विशेषपर स्वदेशी कपड़ा पहन लेने तक ही सीमित नहीं है। इतना तो हमें हर समय करना ही है और सो भी ईर्ष्या अथवा बदलेकी भावनासे नहीं, बल्कि इसलिए कि अपने प्रिय देशके प्रति यह हमारा कर्त्तव्य है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि अगर हम विदेशमें बना हुआ कपड़ा पहनते हैं, तो हम स्वदेशीका उल्लंघन करते हैं। किन्तु यदि हम देशी कपड़ेको विलायती ढंगसे सिलवा लेते हैं, तो भी हम उसका उल्लंघन करते हैं। आखि वातावरणसे पहरावेका कुछ-न-कुछ सम्बन्ध तो होता ही है। हमारी पोशाक शोभा और सुरुचिमें ‘कोट’ या ‘पैंट’ से कई गुना बढ़कर है। जब मैं किसी भारतीयको पाजामेके ऊपर कमीज और कमीज़पर बिना नेकटाईके वास्कट पहने हुए देखता हूँ और देखता हूँ कि उसके पल्ले हवामें उड़ते चले जा रहे हैं, तो मुझे अच्छा नहीं लगता। धर्मके क्षेत्रमें स्वदेशी हमें अपने गौरवशाली अतीतका मूल्यांकन करना सिखाती है और सिखाती है आधुनिक कालमें उसका सुधरा हुआ आचरण। यूरोपमें चारों ओर जो अशान्ति फैली हुई है, उससे स्पष्ट हो जाता है कि आधुनिक सभ्यता अशिव और अन्धकारमय शक्तियोंका प्रतिनिधित्व करती है; जब कि प्राचीन अर्थात् भारतीय सभ्यता मूलतः दैवी शक्तियोंका प्रतिनिधित्व करती है। आधुनिक सभ्यता मुख्य रूपमें भौतिकतावादी है जब कि हमारी सभ्यता प्रधान रूपसे आध्यात्मिक है। आधुनिक सभ्यता भौतिक नियमोंकी खोजमें लगी हुई है और मानवीय प्रतिभाको उत्पादन और विनाशके साधनोंकी खोजमें जुटाये हुए है; और हमारी सभ्यता मुख्य रूपसे आध्यात्मिक नियमोंकी खोजमें लगी हुई है। हमारे शास्त्रोंमें स्पष्टत: यह कहा गया है कि सत्य-जीवनके लिए सत्यका ठीक-ठीक पालन, पवित्र आचरण, प्रत्येक जीवके प्रति अहिंसाकी भावना, किसी औरके धनकी इच्छा न रखना और दैनिक जीवनके लिए जो आवश्यक है केवल उसीका संचय नितान्त आवश्यक बातें हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि इन बातोंके बिना आत्म-तत्त्वका ज्ञान असम्भव है। हमारी सभ्यताने दृढ़तापूर्वक यह कहनेका साहस किया है कि अहिंसाका समुचित और सम्पूर्ण विकास सारे संसारको हमारे चरणोंमें लाकर डाल देता है। सक्रिय रूपमें अहिंसाका अर्थ है पवित्रतम प्रेम और करुणा। इस वचनका उच्चारण करनेवाले महापुरुषने अनन्त उदाहरण देकर इसे प्रमाणित कर दिया है।

अहिंसाका सिद्धान्त

राजनीतिक जीवनमें इसके परिणामोंपर नजर डालिए। हमारे शास्त्रोंमें जीवन-दानसे बड़ा कोई दान नहीं है। सोचकर देखें कि अगर हम अपने शासकोंको उनके जीवनकी ओरसे बिलकुल निश्चिन्त कर दें, तो हमारे और उनके सम्बन्ध कितने अच्छे हो सकते हैं। अगर उन्हें इस बातका विश्वास हो जाये कि हमारी भावना उसके