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भाषण: गुरुकुलके अछूतोद्धार सम्मेलनमें

 

सोयाबीन भारतमें होती है। उसके दाने सिन्धके खेतोंमें देखे थे। आवश्यकता हो तो वहाँके लोग बेचते हैं।

क्या जमनादासका स्वास्थ्य अबतक बिल्कुल ठीक हो चुका है? क्या वह भी तमिल पढ़ता है? रेवरेंड साइमन और लाजरससे मिलना। मेरा खयाल है कि ईसाइयों में से कोई न कोई पढ़ानेवाला मिल जायेगा। यदि तुमने काफी प्रगति की हो तो अखबार पढ़नेका अभ्यास करना। लगता है, कृष्णस्वामी वहीं रहता है। वह पश्चात्ताप तो करता है। उससे कुछ मदद मिल सकती है या नहीं यह भी देखना।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६९३) से।

सौजन्य: राधाबेन चौधरी

१८९. भाषण: गुरुकुलके अछूतोद्धार सम्मेलनमें

मार्च १८, १९१६

यदि नानकचन्द यह न कह गये होते कि अछूतोंके गोत्र वे ही हैं जो दूसरे राजपूतोंके हैं, तो भी हम उन्हें अछूत न समझते, क्योंकि सबसे प्रेम करना हमारा कर्तव्य है। श्री शंकरन नायरने मुझसे कहा था कि अछूतोंके साथ असमानताका व्यवहार करनेके कारण भारत हमारे हाथसे चला गया। मैं भी ऐसा विश्वास करता हूँ। जब कोई और हमारे साथ वैसा ही अपमानजनक व्यवहार करेगा तब हम इसे समझेंगे। सच कहें तो हमने वास्तवमें भयानक पाप किया है। अपनी अन्तरात्मा और अपने कल्याणके लिए हमें पश्चात्ताप करना ही चाहिए और अपनेको फिर पहले ही जैसा निष्पाप बना लेना चाहिए। हमें प्रायश्चित्त करना चाहिए। प्रायश्चित्त क्या है? इस पापका व्यावहारिक हल क्या है, यह मैं आपको तत्काल ही बता सकता हूँ। सबसे पहले तो हमको निश्चित रूपसे यह जान लेना चाहिए कि उनके साथ समानताका व्यवहार, उनके बच्चोंको अपने स्कूलोंमें लेना आदि हमें उनकी नहीं बल्कि अपनी मुक्तिके विचारसे करना है। हम केवल ईसाई प्रचारकोंका अनुकरण करते हैं; किन्तु जो लोग इस समस्याके हलमें सक्रिय भाग ले रहे हैं उन्हें मैं सुझाव देता हूँ कि वे इस समस्यापर अधिक गम्भीरता तथा सच्चाईके साथ विचार तथा व्यवहार करें और तब देखें कि इसके लिए क्या करना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
वैदिक मैगजीन, अप्रैल-मई, १९१६