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भेंट: कराचीमें पत्र-प्रतिनिधियोंसे

जाता है। व्यापारी लोग कहेंगे, हम तो व्यापारका काम करते हैं; हम कोई दूसरी खटपट नहीं करते। किन्तु ऐसा नहीं सोचना चाहिए। उन्हें आसपासके वातावरणको ध्यानमें रखकर काम करना चाहिए। हिन्दुओं, मुसलमानों और पारसियों――सभीके धर्मग्रन्थोंमें लिखा हुआ है कि व्यापारियोंको व्यापारके साथ-साथ लोगोंकी सेवा भी करनी चाहिए। अकालके दिनोंमें चीजोंके दाम इतने ऊँचे कर देना कि लोग नेस्तनाबूद हो जायें, खरे व्यापारीका काम नहीं है। इससे तो लोगों और व्यापारियों दोनोंकी ही अवनति होती है। स्वदेशी आन्दोलनकी विफलता व्यापारियोंके कारण ही हुई है। इसका दोष सभी लोग बम्बई अहातेके ऊपर डालते हैं। वहाँके लोगोंने पैसा इकट्ठा करनेके उद्देश्यसे ही स्वदेशी माल बेचनेमें दिलचस्पी नहीं ली। जिस प्रकार क्षत्रियका कर्त्तव्य मारना नहीं है, उसी प्रकार व्यापारीका काम भी पैसा इकट्ठा करना नहीं है।

[गुजरातीसे]
गुजरात मित्र अने गुजरात दर्पण, १२-३-१९१६

१८५. भाषण: कराचीके स्वागत-समारोहमें[१]

मार्च २, १९९६

प्रत्येक मनुष्यको अपनी मातृभाषामें ही शिक्षा मिलनी चाहिए और विदेशी भाषाको ऐच्छिक विषयका स्थान दिया जाना चाहिए। जीवनपर मातृभाषाका जो प्रबल प्रभाव पड़ता है, वह किसी अन्य भाषाका नहीं पड़ सकता।

[गुजरातीसे]
गुजराती, १२-३-१९१६

१८६. भेंट: कराचीमें पत्र-प्रतिनिधियोंसे[२]

मार्च २, १९१६

मैंने अपने भ्रमणमें यह देखा कि पूनामें सार्वजनिक हलचल बहुत अधिक है। यह ठीक है कि सार्वजनिक हलचल मद्रासमें भी काफी है किन्तु वहाँ इसका कारण विद्यार्थियोंकी अधिकता है। पूनामें मैंने यह देखा कि वहाँ कुछ लोग ऐसे हैं जो जनताके आदमी (नेता) बन सकते हैं। मद्रासमें ऐसा नहीं लगता। समस्त भारतमें केवल पूनामें ही ऐसे लोग हैं जिनमें से मुझे लगता है कि बहुत-से व्यक्ति भविष्यमें जनताका प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। बम्बईमें भी स्थिति ठीक है किन्तु वहाँको सार्वजनिक हलचल दो-एक सज्जनोंपर ही निर्भर है। बाहरके लोग सिन्धपर यह आरोप

  1. १. कराची बन्धु-मण्डल द्वारा भायोजित।
  2. २. कराचीकी गुजराती पत्रिका पारसी संसारके प्रतिनिधिसे।