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१८४. भाषण: कराचीमें[१]

फरवरी २९, १९१६

आज गुजराती भाइयोंने मेरा जो सम्मान किया है उसके लिए मैं उनका बहुत आभारी हूँ। मैं जहाँ गया वहाँके गुजराती लोगोंने मेरा ऐसा ही सम्मान किया। यद्यपि सभी लोग मेरे अपने हैं, किन्तु गुजराती भाई मेरे विशेष अपने हैं। इसलिए मेरी इच्छा है कि में अपने गुजराती भाइयोंकी विशेष सेवा कर सकूँ; किन्तु चूँकि मुझे समस्त भारतमें घूमना होता है, इसलिए यदि में अपना सारा समय गुजरातमें ही लगा दूँ तो यह ठीक नहीं कहा जायेगा। मैंने देखा है कि गुजराती भाई कलकत्ता, मद्रास, बंगाल आदि स्थानों में व्यापारके निमित्त फैल गये हैं। दक्षिण आफ्रिकामें भी व्यापारीवर्गमें बड़ा भाग गुजरातियोंका ही है। कराचीमें गुजरातियोंकी आबादी ऊपर बताये गये सभी स्थानों की अपेक्षा अधिक है; चूँकि कराची सिन्ध प्रदेशके अन्तर्गत है, इसलिए यहाँ सिन्धियोंकी आबादी अधिक है, तिसपर भी पहली निगाहमें ऐसा ही लगता है कि कराचीमें सिन्धियोंकी अपेक्षा गुजरातियोंकी आबादी अधिक है।

गुजरातमें तीन जातियाँ हैं――गुजराती हिन्दू, गुजराती पारसी और गुजराती मुसलमान। ये तीनों ही प्रायः व्यापारके उद्देश्यसे देशके विभिन्न भागोंमें फैल गये हैं। अब व्यापारियोंका सच्चा धर्म पैसा कमाकर जमा करना और जैसे-बने-वैसे लोगोंको लूटपाट कर धनी हो जाना नहीं है। ऐसे तो पिडारी लोग भी लोगोंको लूट-मारकर मालदार हो जाते थे। व्यापारमें धोखा-धड़ी करनेमें और थप्पड़ मारकर पैसा छीन लेनेमें मुझे तो कोई अन्तर नहीं दिखता। व्यापारीवर्गको सचाईके रास्तेपर चलकर व्यापार करना चाहिए। उन्हें लोगोंको दबाने या कुचलनेका काम नहीं करना चाहिए। मैं यह नहीं कहता कि आप व्यापारमें ऐसा ही करते होंगे। जहाँ पाप किया होगा, वहाँ प्रभुका डर भी रखा होगा और किसी मनुष्यपर दया भी की होगी। व्यापारियोंका मुख्य काम यह है कि वे दयापूर्ण व्यवहार करें और अपने भीतर दया-भाव बढ़ायें। यदि हम पढ़-लिखकर डॉक्टर या वकील हो जायें तो यह पढ़ना-लिखना नहीं हुआ। हमें व्यापारको विकसित करनेका प्रयत्न करना चाहिए। इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण सर दोराब[२] और रतन ताता हैं। सर दोराब अपने लड़कोंको डॉक्टर या वकीलका धन्धा नहीं सिखाते। ऐसे डॉक्टर तो उनके घरमें सत्तरह-सौ होंगे। किन्तु उन्होंने इस देशके व्यापारको विकसित करनेमें भाग लिया है; आप उसीका अनुकरण करें। भारतमें उनकी तुलनामें टिकनेवाला कोई मनुष्य नहीं है। बर्मिंघमके श्री चेम्बरलेन भी सच्चे व्यापारी थे, यद्यपि वे अब मर चुके हैं; किन्तु व्यापारिक जगत्में उनका स्मरण अभीतक किया

  1. १. कराचीके गुजराती हिन्दू सत्कार-मण्डल द्वारा दिये गये मानपत्रके उत्तरमें।
  2. २. सर दोराबजी जमशेदजी ताता, (१८५९-१९३२); सर जमशेदजी नसरवानजी ताताके ज्येष्ठ पुत्र, रतन ताताके भाई; अग्रणी उद्योगपति और दानी।