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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर्तव्यनिष्ठा तथा सेवा करनेकी लगनका अभाव ही हम लोगोंकी संकटमय स्थितिका कारण है। श्री गोखलेने चारित्र्य-बल बढ़ाने के उद्देश्यसे ही भारत सेवक समाज (सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) की स्थापना की थी। वे राजनैतिक जीवनमें आध्यात्मिकताका समावेश चाहते थे। वे चाहते थे [कि] नेता लोग प्रशंसाके पीछे न दौड़कर कर्त्तव्य पालन करें।

यदि मैं श्री गोखलेके सद्गुणोंका अनुकरण न करूँ तो मैं उनके चित्रका अनावरण करनेके अयोग्य माना जाऊँगा। और यदि आप लोग ऐसा न करें तो आप अपनेको इस उत्सवमें भाग लेनेके अयोग्य सिद्ध करेंगे।[१]

भाषण समाप्त करनेके पूर्व श्री गांधीने भारत सेवक समाजको आर्थिक सहायता देनेकी अपील की।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २९-२-१९१६

१८१. भाषण: हैदराबादमें चेचकके टीकेपर

फरवरी २८, १९९६

दिनमें श्री गांधी नारीशाला, नवलराय हीरानन्द अकादमी, नवविद्यालय हाईस्कूल तथा कुंदनमल गर्ल्स स्कूल गये; तीसरे पहर वे हीराबागमें स्थित श्री पी० सी० मांकडके मकानपर गये, जहाँ हैदराबादमें बसे हुए गुजराती तथा दक्षिणी लोग एकत्रित हुए थे। वहाँ श्री गांधीको मानपत्र भेंट किया गया और उन्हें मालाएँ पहनाई गईं। उसके पश्चात् वे दीवान वाधूमल बेलाराम तथा उनके भाइयोंके साथ मोटरमें बैठकर सेन्ट्रल जेल गये। जेलके अधीक्षकसे प्रार्थना की गई कि वे श्री गांधीको जेलके अन्दरका भाग देखनेकी अनुमति दें। परन्तु अधीक्षकने बिना किसी शिष्टाचारके इनकार कर दिया। इसके बाद श्री गांधी होम्स्टैंड हॉल गये। वहाँ उन्होंने टीके लगवानके सम्बन्धमें अपने विचार संक्षेपमें व्यक्त किये। उन्होंने कहा: मैंने इस विषयपर खास तौरसे गौर नहीं किया; थोड़ा बहुत सोचा है। मेरा खयाल है चूँकि टोकेकी दवाई गौको अत्यन्त पीड़ा पहुँचाकर तैयार की जाती है, इसलिए टीका लगाना हिन्दू-धर्मके मौलिक सिद्धान्त――अहिंसा――का हनन करता है। कट्टर हिन्दू टीका लगवानेसे इस कारण एतराज करते हैं कि बाँहमें दिये गये इंजेक्शनका वही अर्थ है जो मुखसे पी हुई दवाई-का होता है। टीका लगाने की व्यवस्था केवल इसी कारण आपत्तिजनक नहीं है बल्कि इसलिए भी कि इससे संक्रामक रोगोंके फैलनेकी आशंका रहा करती है। जो लोग टीका नहीं लगवाते, उन्हें चेचक निकल ही आती हो सो बात नहीं है। और न यही

  1. १. ये दो वाक्य गुजराती (५-३-१९१६) से लिये गये हैं।