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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तबतक भारतीय मजदूरोंका दूरस्थ देशोंमें भेजा जाना मालिक और नौकर दोनोंके लिए हानिकारक हुए बिना नहीं रह सकता; फिर चाहे वे दूरस्थ देश ब्रिटिश साम्राज्यके अन्तर्गत हों या उसके बाहर और भले ही शर्तनामेमें अवधिका कोई बन्धन न हो। नेटालमें भारतीय मजदूरोंके अनेक मालिक वैसे बहुत दयालु हैं; मुझे उन्हें जाननेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है। और यद्यपि वे मजदूर उनके ही आदमी थे। परन्तु वे अपने मवेशियोंके साथ जितना अच्छा व्यवहार करते हैं उससे बेहतर अपने मजदूरोंके साथ नहीं करते, कर नहीं सकते। मैं इन शब्दोंका प्रयोग किसी अनुदार भावनासे नहीं कर रहा हूँ। कृपालुसे-कृपालु मालिक भी अपने वर्गके दोषोंसे मुक्त नहीं हैं। वह सहज भावसे सोचता है कि भारतीय मजदूर मुझसे कमतर और मेरी बराबरीका कभी हो ही नहीं सकता। सभी जानते हैं कि कभी कोई गिरमिटिया भारतीय फिर वह चाहे जितना होशियार और स्वामिभक्त क्यों न रहा हो, अपने स्वामीकी पेढ़ीका मालिक नहीं बन पाया। परन्तु में भारतीय स्वामीकी गद्दी सँभालनेवाले भारतीय नौकरोंकी भाँति अपने स्वामियोंकी गद्दी सँभालनेवाले अंग्रेज नौकरोंको जानता हूँ। उत्तरोत्तर सम्बन्धोंके सुधरनेके लिए अंग्रेज दोषी नहीं है। यह स्पष्ट करना कि यदि ऐसा है भी तो कौन, कितना दोषी है, अथवा इस परिस्थितिके कारण क्या हैं, यह बताना इस लेखकी परिसीमामें नहीं आता। मुझे इस बातका जिक्र यह दिखानेके लिए करना पड़ा कि अन्य कारणोंका खयाल न किया जाये तो भी यह साफ है कि एक राष्ट्रकी हैसियतसे गिरमिटिया मजदूर-प्रथा स्पष्टतः हम लोगोंके लिए इतनी पतनकारी है कि उसे हर हालतमें बन्द कर दिया जाना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, २५-२-१९१६

१७९. भाषण: स्वागत समारोहमें[१]

फरवरी २६, १९९६

हैदराबादमें श्री गांधीका शानदार स्वागत हुआ। इस अवसरपर एक बहुत बड़ा जुलूस निकाला गया। जुलूसमें लगभग सात हजार व्यक्ति उपस्थित थे; उनके आगे-आगे बम्बई धारासभाके दो मुसलमान सदस्य माननीय भुरग्री और माननीय गुलाम-हुसेन चल रहे थे; जुलूसमें पचास गाड़ियाँ थीं। जुलूस जिन सड़कोंसे होकर जा रहा था उन सड़कोंपर अपार भीड़ थी और अनेक स्थानोंपर उन्हें मालाएँ पहनाई गई थीं; इन कारणोंसे गांधीजीको अपने ठिकानेपर पहुँचनेमें ३ घंटे लग गये। सभामें उनको चन्दनकी एक मनोहर मंजूषामें रखकर प्रशंसात्मक शब्दोंसे भरा हुआ एक मानपत्र भेंट किया गया। उस सभामें श्री गांधीको छोड़कर सब वक्ताओंने अंग्रेजीमें भाषण दिया था, गांधीजीने हिन्दीमें ही बोलना उचित समझा।

  1. १. हैदराबाद, सिन्धमें आयोजित।