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गिरमिट-प्रथा

 

तुम्हें यहाँ आनेसे घबराना नहीं चाहिए। स्वभावतः मेरी इच्छा तुम्हें साथ रखनेकी ही होगी। किन्तु यदि तुम अलग ही व्यवस्था करना चाहोगे तो कर दूँगा। यहाँ आ जानेपर सब ठीक हो जायेगा।

खुशालभाई और देव भाभीका[१] मन बम्बईमें लग गया जान पड़ता है। मेरा उनका पूर्वजन्मका जबरदस्त लेन-देन है। हम चचेरे भाई हैं, वे ऐसा अनुभव भी नहीं होने देते।

काशीमें क्या हुआ[२]इस सबके सम्बन्धमें अपने विचार लिखूँ तो पन्नेके-पन्ने भर जायें; किन्तु इतना समय नहीं है। तुम जब यहाँ आओगे तब सब मालूम हो जायेगा।

मोहनदासके आशीर्वाद

इमाम साहबके[३]पिताजी गुजर गये हैं। उन्हें सहानुभूतिका पत्र लिख देना।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६९२) से।

सौजन्य: नारणदास गांधी

 

१७८. गिरमिट-प्रथा

अनेक कारणोंसे गिरमिट प्रथाका प्रश्न आज एक ज्वलन्त प्रश्न बना हुआ है–―श्री ऐन्ड्रयूज और श्री पियर्सन, जिन्हें भारत अपनी मातृभूमिकी भाँति ही प्यारा लगने लगा है, हालमें भारतके हितके लिए फीजी द्वीप गये हुए थे। यह काम उन्होंने स्वेच्छासे हाथमें लिया था। अपना काम समाप्त करके अब वे लौट आये हैं। उन्होंने जो रिपोर्ट पेश की है वह शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रही है। मालवीयजीने इम्पीरियल कौंसिल में एक प्रस्ताव प्रस्तुत करनेकी सूचना भेजी है। यदि वह प्रस्ताव वहाँ पास हो गया तो भारत-सरकारके लिए गिरमिट-प्रथाको बन्द कर देना अनिवार्य हो जायेगा। पाठकोंको स्मरण होगा कि यह काम स्वर्गीय श्री गोखलेने १९१२ में उठाया था। श्री मालवीयजीका यह प्रस्ताव[४] उसी श्रृंखलाकी एक कड़ी है। श्री गोखलेने (इम्पीरियल कौंसिलमें) उस समय उत्कटताके साथ और आँकड़े प्रस्तुत करते हुए इस प्रथाको बन्द कर देनेके सम्बन्ध में प्रस्ताव उपस्थित किया था। परन्तु अधिक सरकारी वोटोंके कारण वह प्रस्ताव गिर गया था। नैतिक विजय तो श्री गोखलेकी ही हुई थी। गिरमिट-प्रथाकी मौतकी घंटी तो तभी बज चुकी थी, जिस समय उनका प्रस्ताव परिषद्के सामने लाया गया

 
  1. १. छगनलालकी माताजी।
  2. २. आशय बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में दिये गये गांधीजीके भाषण और उससे सम्बन्धित घटनासे है। देखिए “भाषण: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में”, ६-२-१९१६।
  3. ३. इमाम अब्दुल कादिर बावजीर,।
  4. ४. मार्च १९१६ में पंडित मदनमोहन मालवीयने शाही परिषद्में इस आशयका एक प्रस्ताव पेश किया था कि गिरमिट-प्रथा बन्द कर दी जाये।