कार्रवाई समाप्त करते हुए गांधीजीने कहा:
सौ. विद्यागौरीका[१] भाषण कुछ टिप्पणी करनेके योग्य है। हम स्त्रियों और पुरुषोंके समान अधिकार स्वीकार कर लेंगे; किन्तु चूँकि उनकी स्थिति और उनके कर्त्तव्योंमें भिन्नता है, इसलिए मेरी मान्यता है कि उनकी शिक्षामें भी भिन्नता होनी चाहिए। उन्नत देशोंमें स्त्रियोंको बहुत ऊँची शिक्षा दी जाती है; परन्तु उन्हें आखिर पुरुषोंके समान कर्तव्योंका पालन नहीं करना पड़ता; और हमारे यहाँ स्त्रियोंको आजीविका उपार्जित करनेके सम्बन्धमें पुरुषोंके मुकाबलेमें स्पर्धा नहीं करनी पड़ती। हम इस सम्बन्धमें जो सहायता करते हैं वह व्यर्थ नहीं जायेगी। हम जब अपने यहाँ स्कूल या कॉलेजकी स्थापना करेंगे तब हमें अपनी दी हुई रकममें से बदलेमें कुछ मिलेगा ही। इसलिए मेरा आग्रह है कि इस संस्थाको जितनी हो सके उतनी सहायता देनी चाहिए।
प्रजाबन्धु, २७-२-१९१६
१७७. पत्र: छगनलाल गांधीको
अहमदाबाद
माघ बदी ५ [फरवरी २३, १९१६][२]
मैं मद्रासमें चि० मगनलाल और जमनादाससे एवं बम्बईमें आदरणीय खुशालभाई आदिसे मिलकर अभी-अभी यहाँ आया हूँ। सन्तोक और दोनों लड़कियाँ मेरे साथ वापस आ गई हैं, क्योंकि वहाँ उनका काम समाप्त हो गया था और मगनलालको मद्रास प्रान्तमें भ्रमण करना था। मैंने मगनलालको यह सलाह दी है कि वह अपना तमिलका अध्ययन पूरा करके ही यहाँ ये। मुझे बताया है कि उसने बुनाईका काम तो अच्छी तरह सीख लिया है। जमनादास और उसकी बहू अभी वहीं रहेंगे। जमना- दासका स्वास्थ्य तो अभी बिलकुल पहले-जैसा नहीं है। बाकी सब ठीक है।
खुशालभाई और हम सब चाहते हैं कि तुम अब यहाँ आकर रहो।[३] तुम वहाँ धंधा कर लो यह तो अनुचित जान पड़ता है। घर और खेतीका जैसा ठीक लगे वैसा करना। यहाँसे अभी किसीको भेजना सम्भव नहीं दिखता। अभी तो कोई बुलाया भी नहीं गया है। बल्कि भाई प्रागजीने लिखा है कि वहाँ किसीको भेजेंगे तो भगाको छुट्टी देनी पड़ेगी।