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भाषण: भारतीय महिला विश्वविद्यालयपर

कुछ भी कहना नहीं चाहता; मैं तो केवल इतना ही कहूँगा कि मैं उनसे सहमत नहीं हूँ। मुझे राजनीतिका बहुत-काफी अनुभव प्राप्त है। मैं भारतके लिए उज्ज्वलसे उज्ज्वल भविष्यकी आशा कर रहा हूँ।...

माननीय आर० पी० परांजपेने प्रस्ताव रखा कि सभा श्री गांधी और अध्यक्ष महोदय के प्रति कृतज्ञता प्रकट करती है।

[अंग्रेजीसे]

बॉम्बे क्रॉनिकल, २१-२-१९१६

बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स, १९१६, पृष्ठ १३०
 

१७६. भाषण: भारतीय महिला विश्वविद्यालयपर[१]

फरवरी २३, १९१६

जो सज्जन आपके सम्मुख भाषण देनेवाले हैं उन्हें सभी लोग जानते हैं इसलिए मुझे उनका विशेष परिचय देनेकी आवश्यकता नहीं जान पड़ती। उन्होंने अभी हालमें भारतीय महिलाओंके विश्वविद्यालयकी स्थापना करनेका जो कार्य हाथमें लिया है वह विभिन्न देशी भाषाओंका जीर्णोद्धार करनेका कार्य ही है। उनकी स्त्री-शिक्षाकी योजनाके अनुसार वे आगामी जून मासमें परीक्षालय और विद्यालयकी स्थापना करेंगे। इस कार्यमें यथाशक्ति सहायता देना हमारा कर्त्तव्य है। कहा जाता है कि इस समय हमारे समाजको पक्षाघात हो गया है। यह आरोप बहुत-कुछ ठीक है। क्योंकि हम जितनी तीव्र गतिसे आगे बढ़ रहे हैं उतनी तीव्र गतिसे अपनी अर्धांगिनियोंको हम आगे नहीं बढ़ा सकते। इसका मुख्य कारण हमारी अपनी स्थिति ही है। प्रो० कर्वे ने हमारे स्त्री-वर्गकी दशा सुधारनेके उद्देश्यसे ही यह काम हाथमें लिया है। और इसे वे बड़ी तीव्र गतिसे कर रहे हैं। मुझे कहना चाहिए कि उनका उत्साह अनुपम है। यदि मैं उनका परिचय श्री गोखलेके शब्दोंमें दूँ तो वे साकार सत्य हैं; इसलिए हमारा विश्वास है कि उनके हाथोंसे जो काम हो रहा है उस काममें चाहे हमारी आशाके अनुरूप सफलता न भी मिले तो भी उससे हानि तो किसी भी प्रकारकी न होगी। उन्होंने अपने जीवनके २० वर्ष फर्ग्युसन कॉलेजकी सेवामें बिताये हैं और वे २० वर्षसे विधवाश्रम चलाते हैं। अब अपनी आयुके ५९ वें वर्षमें उन्होंने यह कार्य हाथमें लिया है। इससे उनके त्याग और उत्साहकी परिसीमा सूचित होती है। पूनामें जैसी आत्म-त्यागकी भावना दिखाई देती है वैसी गुजरातमें नहीं। यह हमारे लिए लज्जाकी बात है। इसलिए हमें प्रो० कर्वेके जीवनसे बहुत शिक्षा लेनी है।

  1. १. अहमदाबादमें उक्त महिला विश्वविद्यालयके संस्थापक प्रो० घों० के० कर्वेने (१८५८-१९६२) एक सार्वजनिक सभामें भाषण दिया था सभाके अध्यक्षकी हैसियतसे पहले प्रस्तावना करते हुए और अन्तमें उपसंहार करते हुए गांधीजीने ये शब्द कहे थे।