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१७४. भाषण: देशी-भाषाओं और शिक्षापर[१]

[फरवरी १७, १९१६]

श्री ए० एस० राजमने अपने संक्षिप्त भाषणमें इस विषयको सभाके समक्ष प्रस्तुत किया...

उसके अनन्तर गांधीजीने वाद-विवादको समाप्त करते हुए अपने विचार व्यक्त किये। हमारे स्कूलों और कॉलेजोंमें देशकी भाषाओंको शिक्षाका माध्यम बनानेसे कदापि जाति-भेदकी समस्या खड़ी न होगी। हम एक ही राष्ट्र हैं, अंग्रेजोंके आनेके पूर्व भी हम एक ही राष्ट्र थे और हम लोगोंका धर्म भी एक ही था। इतिहास-सम्बन्धी पुस्तकोंसे स्पष्ट है कि हमारे संतगण धार्मिक सम्मेलनोंके लिए देशके एक कोनसे दूसरे कोनेकी यात्रा किया करते थे और इस कारण लोगोंमें भाईचारेकी भावना सदा विद्यमान रहा करती थी।जनसाधारणके कल्याण तथा देशको वास्तविक उन्नतिके लिए सम्बन्धित अधिकारियोंको चाहिए कि शीघ्र ही इस समस्याका कोई हल निकालें। देशी भाषाओंको शिक्षाका माध्यम बनानेके खिलाफ उठाये गये एतराज बिलकुल बेबुनियाद हैं। सबसे अच्छा तो यह होगा कि लोग खुद इस मामलेको हाथमें ले लें और देशके लोगोंको देशी-भाषाओंके माध्यमसे शिक्षित करें। उस दशामें स्वयं राजकाज चलाने- वालेको समुचित प्रशासनके हितमें देशकी भाषाएँ सीखनी ही पड़ेंगी।

[अंग्रेजीसे]
न्यू इंडिया, १८-२-१९१६
 

१७५. भाषण: पूनामें गोखलेकी बरसीके अवसरपर

फरवरी १९, १९१६

इसी मासकी उन्नीसवीं तारीखको किर्लोस्कर थियेटर पूनामें श्री गोखलेकी बरसी मनाने के सम्बन्धमें एक सभा हुई। सभामें लगभग दो हजार व्यक्ति उपस्थित थे और अध्यक्षता श्री एच० डब्ल्यू० वाडिया, बार-एट-लॉने की।

श्री गांधीने, जो दक्षिण सभाके निमन्त्रणपर पूना आये थे, अपने भाषणमें यह आशा प्रकट की कि गोखलेकी बरसी ढंगसे मनाई जायेगी; उनके प्रति श्रद्धा रखनेवाले तथा उसे व्यक्त करनेके इच्छुक सज्जनोंको चाहिए कि वे उन कामोंमें से एकाध काम

  1. १. फरवरी १६, १९१६ को संध्या-समय मद्रासके ऐंडर्सन हॉलमें “क्रिश्चियन कॉलेज एसोसिएटेड सोसाइटीज़” के तत्त्वावधान में संयुक्त वाद-विवाद की व्यवस्था की गई थी। वाद-विवादका विषय था “क्या हमारे स्कूलों और कॉलेजोंमें देशी-भाषाएँ शिक्षाका माध्यम रखी जायें?” सभाके अध्यक्ष गांधीजी थे।