पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/२७६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उनके हॉलसे उठकर चले जाने के सम्बन्धमें मैं तो कहता हूँ कि वे राजाओंके साथ ही चली गईं थीं।

अपने भाषणोंमें मैंने जो-कुछ कहा, उसे लें तो में अभी यह नहीं जान पाया हूँ कि उसमें ऐसी कौन-सी बात थी, जो इतनी आपत्तिजनक मालूम हुई कि वे बीचमें ही बोल पड़ीं। वाइसरॉय महोदयके आगमन तथा उनकी सुरक्षाके लिए किये गये आवश्यक प्रबन्धके सम्बन्धमें बोलने के बाद मैंने यह दिखलाया कि किसी हत्यारेकी मृत्यु श्रेयस्कर कदापि नहीं होती और कहा कि अराजकताके विचार हमारे शास्त्रोंके विरुद्ध हैं और भारतमें उनके लिए कोई स्थान नहीं है। फिर मैंने कहा कि श्रेयस्कर मृत्यु इससे बिल्कुल अलग चीज है। ऐसी मृत्युका आलिंगन करनेवाले लोग इतिहास में अपने विश्वास के लिए प्राण देनेवाले लोगोंके रूपमें समादृत होते हैं। लेकिन जब कोई बम फेंकनेवाला अनेक प्रकारके षड्यंत्र रचकर मरता है, तब उसे क्या मिल सकता है? उसके उपरान्त मैंने लोगोंकी इस भ्रमपूर्ण धारणापर विचार आरम्भ किया कि यदि बम फेंकनेवालोंने बम न फेंके होते तो बंग-भंग आन्दोलनके सिलसिलेमें हमें जो- कुछ मिला वह न मिलता। लगभग इसी समय श्रीमती बेसेंटने सभापति महोदयसे मेरा भाषण बन्द करा देनेका अनुरोध किया। व्यक्तिशः मैं यह चाहता हूँ कि मेरा सारा भाषण[१] प्रकाशित कर दिया जाये, जिसके विचार प्रवाहकी दिशासे यह बात पर्याप्त रूपसे स्पष्ट हो जाती है कि मैं विद्यार्थियोंको हिंसात्मक कार्रवाई करनेके लिए भड़का ही नहीं सकता। ऐसा करना मेरे लिए सम्भव ही नहीं है। वास्तवमें उसमें मेरा अभिप्राय यह था कि हम कठोर आत्म-निरीक्षण करें।

मैंने अपना भाषण इस बातसे आरम्भ किया कि मैं अंग्रेजीमें बोलूँ, यह श्रोताओंके लिए भी और मेरे लिए भी लज्जाजनक है। मैंने कहा कि अंग्रेजी भाषा शिक्षाका माध्यम बन गई है, जिससे देशको बड़ी भारी हानि पहुँची है और मैं समझता हूँ, मैंने सफलतापूर्वक यह समझाया कि यदि गत पचास वर्षोंसे हम लोगोंको उच्चतर ज्ञानकी शिक्षा देशी भाषाओं में ही मिलती तो इस समय तक हम लोग अपने लक्ष्यके बिलकुल निकट पहुँच गये होते। इसके बाद मैंने स्वशासन-सम्बन्धी उस प्रस्तावका जिक्र किया जो कांग्रेसमें पास हुआ था और दिखलाया कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी तथा भारतीय मुस्लिम लीग जिस समय अपने भावी-शासन-विधानका मसविदा तैयार करें उस समय उनका यह कर्तव्य भी है कि वे अपने कार्योंसे अपने-आपको स्वराज्यके योग्य बनायें। और यह दिखलानेके लिए कि हम लोग अपने कर्त्तव्यसे कितना पीछे रहते हैं, मैंने लोगोंकाध्या न काशी-विश्वनाथके भव्य मन्दिरके आसपास भूलभुलैयाकी तरह बनी गलियोंकी गन्दगी तथा हाल ही में बने उन राजसी भवनोंकी ओर आकृष्ट किया, जिनका निर्माण करते समय गलियोंकी चौड़ाई या सिधाईका कोई विचार नहीं रखा गया है। इसके बाद मैंने श्रोताओंको शिलान्यासके दिनके चाक-चिक्यपूर्ण दृश्यका स्मरण दिलाया, और कहा कि यदि उस दृश्यको किसी ऐसे अजनबीने देखा होता, जिसे भारतके बारेमें कोई जानकारी नहीं

  1. १. देखिए “भाषण: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में”, ६-२-१९१६।